Thursday, December 25, 2008
मदद के लिए गुहार ...
Bone Marrow Transplant (BMT) है । इसके लिए रामालक्ष्मी को CMC, Vellore जाना होगा पर पैसों के आभाव में वो नहीं जा पा रही है । पिछले २ साल में रामालक्ष्मी के परिवार ने तकरीबन ५-६ लाख खर्च किए और अब उनके पास कुछ भी नही बचा है । तो अगर आप रामालक्ष्मी की मदद करना चाहते हैं तो कृपया अपना सहयोग उनके बैंक खाते में जमा करें ।
Bank Account Detail:
Name : G. Ramalakshmi
A/C No. 07430110006757
UCO Bank, HZS Factory Branch
Visakhapatnam - 530015
Tel : 0891 - २५१७४५२
कुछ बातें रामालक्ष्मी और उनके परिवार के बारे में :
रामालक्ष्मी ने २००६ में अपना B.Tech पुरा किया, और उसी वर्ष उन्हें इस बीमारी ने अपना शिकार बना लिया और तब से अब तक जिंदगी और मौत के खेल के बीच जूझ रही है रामालक्ष्मी । रामालक्ष्मी के पिताजी मजदूरी का काम करते हैं । बड़ी मुश्किलों से बेटी को पढाया की आगे जाकर उनका सहारा बनेगी, पर होनी को कौन टाल सकता है । भगवान् उनकी कड़ी परीक्षा ले रहा है ।
रामालक्ष्मी अपने माँ-बाप की सबसे बड़ी संतान है । उस से छोटे २ भाई हैं । दोनों अभी पढाई कर रहे हैं । तो घर में अब आय का स्रोत केवल रामालक्ष्मी के पिताजी हिन् हैं ।
ये APLASTIC ANEMIA होता क्या है ?
APLASTIC ANEMIA में हमारा अस्थि मज्जा लाल रक्त कण बनाना कम या बंद कर देता है , मतलब की अस्थि मज्जाु की लाल रक्त कण बनने की क्षमता खत्म हो जाती है । अगर दवा से सुधर नही होता है तो इसका एक मात्र इलाज BMT(Bone Marrow Transplant) है । जो की बहुत हिन् महंगा होता है । इसका खर्च तकरीबन १०-१२ लाख रूपये आता है । पर BMT करने के पहले एक टेस्ट होता है जिससे ये मिलाया जाता है की आपका Bone Marrow का सैम्पल देने वाले के सैम्पल से मिलता है की नही । यह भी एक बड़ी समस्या है अभी भारत वर्ष में । यहाँ अभी तक कोई भी डाटाबेस नही है जहाँ आपको donor की जानकारी मिल सके । APLASTIC ANEMIA के बारे में बाकी बातें किसी और पोस्ट में । मैं भी अभी इस विषय पर अपनी जानकारी को बढा रहा हूँ । इस विषय में ज्यादा जानकारी के लिए देखें : http://www.aaaoi.org/index.htm
रामालक्ष्मी की वर्तमान स्तिथि :
फिलहाल रामालक्ष्मी blood transfusion पर है और वो विशाखापत्तनम में है । अभी कल हिन् मेरी बात उनसे हुई और उनके पास blood transfusion के लिए भी पैसे नही हैं ।
डॉक्टरों के सलाह के अनुसार अब BMT हिन् उसका एक मात्र इलाज है । इसके लिए CMC Vellore जाना है । CMC Vellore जाने और वहां पर Bone Marrow टेस्ट के लिए भी करीब ५० हजार रुपयों की जरुरत है । एक बार अगर Bone Marrow टेस्ट का सैम्पल किसी से मिल जाएगा उसके बाद हिन् BMT किया जा सकता है ।
आप सहायता कैसे कर सकते हैं ?
--> पहला तो आप रामालक्ष्मी के Account में पैसा डाल सकते हैं । आप जो भी सहायता राशि रामालक्ष्मी के Account में डालें उसके बारे में एक मेल मुझे करना न भूलें : ganand[dot]song[at]gmail.com
--> आप इसकी जानकारी अपने अन्य मित्रों को दे सकते हैं ।
--> आप अगर किसी ऐसी संस्था को जानते हैं जो APLASTIC ANEMIA के मरीजों के लिए काम करती है तो आप हमें उसकी जानकारी दे सकते है ।
--> और हाँ रामालक्ष्मी के मंगल स्वास्थय के लिए प्रार्थना करना न भूलियेगा, आप सभी की दुआ की बहुत जरुरत है ।
और किसी भी प्रकार के शंका निवारण या फ़िर अन्य प्रशन के लिए मुझे मेल करने में आप जरा भी ना हिचकिचाएँ ।
Saturday, December 20, 2008
यूनुस जी को जन्मदिन की ढेरों बधाइयाँ
आप हैं ध्वनि तरंगों के ताल पर विविध भारती के संग और मैं हूँ आपका दोस्त यूनुस खान
कौन नही परिचित होगा इस आवाज से, हाँ ये हैं हमारे प्यारे यूनुस खान जी, और आज इनके जम्दीन के अवसर पर हम सभी की तरफ़ से इन्हे ढेरों बधाइयाँ ....
यूनुस जी की रेडियो पर प्रयोगधर्मिता से आप सभी जरुर वाकिफ होंगे, इस बारे में मुझे कुछ कहने की आवस्यकता नहीं है ।
यूनुस जी के इतना सुलझा और सरल इंसान इस दुनिया में अब बहुत हिन् कमलोग हैं । अगर आप मेरी बात से इतेफाक नही रखते हैं तो सुनिए हमारी हाल के संछिप्त मुलाकात का विवरण ...
७ नवम्बर के दोपहर में मुंबई पंहुचा कुछ काम से, फ़िर मैंने सोचा क्यों न कुछ समय निकाल कर यूनुस जी से भी मुलाकात किया जाए । उनको फ़ोन किया तो पता चला की वो किसी रिकॉर्डिंग में व्यस्त हैं शायद शाम तक छुट्टी मिले । शाम को वापस जब मैं काम करने के बाद तक़रीबन ७.३० pm बजे यूनुस जी को फ़ोन किया तो वो अँधेरी में थे और मैं बोरीवली में । उन्होंने कहा की रुको मैं आ रहा हूँ , तुम axis बैंक के ATM के नजदीक इन्तेजार करना । मेरी गाड़ी बोरीवली से ९.१६ pm पर थी ।
यूनुस जी दौड़ते- भागते ८.४० पर आए । फ़िर बस क्या था हम दोनों वहीँ स्टेशन पर थोड़ा जगह देख कर बैठ गए और ९.१४ तक बात करते रहे । ज्यादातर बातचीत मुंबई धमाकों में मारे गए आमलोगों और हमारे द्विअर्थी समाज के बारे में थी, वो बातें कभी और ... मुझे पता हिन् नही चला की कब ९.१४ हुआ तब यूनुस जी ने बोला भाई भागो वरना गाड़ी छुट जायेगी । अगले दिन हिन् अहमदाबाद से पटना जाना था बाढ़-राहत कार्य के लिए , वरना मैं ट्रेन छोड़ देता ....तो एक और मुलाकात के वादे के साथ यूनुस जी विदा लिया । पुरे रास्ते मैं यूनुस जी की सादगी के बारे में हिन् सोचता रहा ....उनके साथ बिताया एक-एक पल आपको कुछ नया और अलग समाज में करने की प्रेरणा देता है....
अगर आप अभी तक नहीं मिले हैं यूनुस जी से तो जीवन में कम से कम एक बार जरुर मिलिए फ़िर आपका मन बार-बार मिलने का करने लगेगा ....
यूनुस जी के जन्मदिन के अवसर पर उनकी कुछ तस्वीरें :

यूनुस जी ऑटो के ऊपर अपना हाथ साफ़ करते हुए
चित्र सन्दर्भ : सभी चित्र यूनुस जी का ब्लॉग और विविध भारती वेबसाइट से लिए गए हैं ।
Friday, December 19, 2008
पहचान कौन ?

यह तस्वीर मैंने बिना अनुमति के चुरायी है , सर्वप्रथम इसके लिए माफ़ी चाहूँगा । पर इस तस्वीर पर आधारित एक पहेली है सभी ब्लॉगर भाई-बहनों के लिए ....
अपना जवाब कल दोपहर से पहले कमेन्ट में लिखें । कल होगी थोडी लम्बी बातचीत इनके ऊपर, तबतक रखते हैं थोड़ा सा Suspense...
Saturday, December 06, 2008
बाढ़ की विभीषिका अभी खत्म नहीं हुई है बिहार में ...
पर हमलोगों ka ये प्रयास सागर में एक बूँद के सामान होगा ...और लोगों को आगे आने की जरुरत है ....
हमलोगों के पुरे बाढ़ सहायता कार्य की जानकारी के लिए ये ब्लॉग देखें
Wednesday, December 03, 2008
तुकाराम आम्ब्ले को मेरा सलाम
विस्त्रृत समाचार: साभार दैनिक जागरण
गोलियां खाकर भी नहीं छोड़ा आतंकी को
मुंबई। औरों की सुरक्षा के लिए जो बंदूक लेकर चलते हैं उनकी जान भी खतरे में पड़ती है। लेकिन कुछ उल्लेखनीय ढंग से वीरगति प्राप्त करते हैं जिन्हें उनके बलिदान के लिए बारंबार याद किया जाता है।
अभी हाल ही में पदोन्नति प्राप्त कर सहायक सब इंस्पेक्टर का दर्जा हासिल करने वाले महाराष्ट्र पुलिस के 48 वर्षीय तुकाराम आंबले मुंबई में आतंकी हमले के दौरान एक हीरो की तरह शहीद हुए हैं। मुंबई आतंकी हमले में उभरकर सामने आए कई वीरतापूर्ण कारनामों में से एक सच्ची कहानी तुकाराम की भी है।
सलाम तुकाराम को जिसकी बहादुरी के कारण मुंबई पुलिस को आतंकी हमले का एकमात्र आतंकी हाथ लग सका है। अपने वाकी टाकी पर 26 नवंबर की रात प्राप्त संदेश के मुताबिक तुकाराम आंबले क्लास्निकोव एसाल्ट राईफल लेकर अंधाधुंध फायरिंग करने वाले आतंकियों का पीछा किया था।
आतंकियों के बारे में संदेश फैल जाने के बाद डीबी नगर पुलिस स्टेशन की टीम ने चौपाठी के लालबत्ती पर नाकाबंदी की। डीबी नगर पुलिस स्टेशन के सहायक इंस्पेक्टर हेमंत भावधनकर ने बताया कि हमें अपहृत स्कोडा कार पर दो आंतकियों के आने की सूचना मिली थी। हमने सूचना पाने के तत्काल बाद ही दक्षिण मुंबई में स्थित गीरगांव चौपाठी पर नाकाबंदी की।
उन्होंने कहा कि सूचना मिलने के कुछ देर बाद ही हमने देखा कि जिस तरह के कार का ब्यौरा दिया गया था। नाकाबंदी से 50 फीट दूर पर अपनी गति को कम कर लिया है क्योंकि यह कार यू टर्न लेने की कोशिश कर रही थी। इस प्रक्रिया में वह रोड डिवाइडर से भी टकराई। इसके बाद कार हमारी ओर आने लगी और अजमल कसाब [गिरफ्तार आतंकी] कार से उतर आया और आत्मसमर्पण करने जैसी मुद्रा में दिखा क्योंकि उसे दोबारा फिर से अंधाधुंध गोलीबारी करनी थी।
अपनी जान की परवाह किए बगैर तुकाराम आंबले कसाब के सामने आ गया और उसने आतंकी के एके 47 राइफल के बैरल को दोनों हाथों से कसकर पकड़ लिया।
तुकारम आंबले की ओर अपने बंदूक की नोक किए हुए कसाब ने ट्रीगर दबा दी। इस बहादुर पुलिसकर्मी ने सारी गोलियों को अपने सीने के अंदर समाने दिया, लेकिन उसने आतंकी के बंदूक के बैरल को नहीं छोड़ा।
गोलियां खाने के बाद तुकाराम गिर पड़ा, लेकिन कसाब [आतंकी] को नहीं छोड़ा। इसके चलते कसाब की गोलियां का शिकार तुकाराम की टीम के अन्य किसी सदस्य को नहीं होना पड़ा।
इस बीच, उसकी टीम के सदस्यों को दूसरे आतंकी इस्माईल को ढेर करने का मौका मिल गया और कसाब को धर दबोचा। इस निर्भय पुलिस कर्मी की बहादुरी के चलते एकमात्र सबूत के तौर मोहम्मद अजमल कसाब इस समय आतंकवाद निरोधक टीम के कब्जे में है। और उससे जांच टीम को मुंबई आतंकी हमले के कई महत्वपूर्ण सुरागों के बारे में जानकरियां मिल रही है।
अबतक प्राप्त जानकारियों के मुताबिक यह आतंकी प्रमुख आतंकी गुट लश्कर-ए-तैयबा के लिए पिछले डेढ़ साल से काम कर रहा था।
Monday, December 01, 2008
एनएसजी कमांडो के हीरो: हनीफ
उन सभी के मुह पर तमाचा जड़ता है ये एक युवा: हनीफ जो नरीमन हाउस के पास आइसक्रीम बेचने का काम करता हैं। आप खुद हिन् पढिये और अंदाजा lagayie हनीफ की बहादुरी का,
प्रस्तुति साभार : बीबीसी हिन्दी
हनीफ़ नरीमन हाउस के बाहर ही आइसक्रीम की दुकान चलाते हैं लेकिन जब नरीमन हाउस में चरमपंथी आए तो उसके बाद पुलिस और कमांडोज़ को चप्पे चप्पे की जानकारी देने और नरीमन हाउस भवन तक ले जाने का काम हनीफ़ ने ही किया था.
रविवार को लोगों के आइसक्रीम के आर्डरों के बीच बात करते हुए हनीफ़ ने कहा, "असल में क्या है न. मैं इधर का ही रहनेवाला हूँ. मेरेको सभी बिल्डिंग के बारे में पता है. कैसा बना है वो. कैसा जाना है उसमें इसलिए पुलिस जब आई तो लोगों ने मेरा नाम बोला. फिर मैं न पेड़ पर बहुत जल्दी चढ़ पाता हूं इसलिए इधर मुझे लोग जानते भी हैं."
नरीमन हाउस एक सँकरी गली में तीन चार इमारतों के बीच घिरा हुआ है. पहले हनीफ़ पुलिस को वहां लेकर गए और बाद में कमांडो को भी.
वो बताते हैं, "पुलिस तो रात में थी. मैं उनको पहुँचा कर वापस आ गया लेकिन सुबह में कमांडो आए तो मैंने उनको पहले इमारत का नक्शा बना कर दिया. इससे वो बहुत खुश हुए और मुझे साथ लेकर गए. हम लोग नीचे थे और चरमपंथी तीसरे और चौथे माले पर थे."
हनीफ़ शेख़ |
वो बताते हैं कि इमारत में घुसते ही यहूदी रब्बी की लाश पड़ी थी और कमांडो के अनुसार शायद उन्हें चरमपंथियों ने इमारत में घुसते ही मार डाला था.
हनीफ़ बताते हैं कि उन्होंने एक छोटे बच्चे को बाहर निकालने में मदद की और साथ ही आसपास की इमारतों से भी परिवारों को बाहर निकाल कर सुरक्षित स्थान पर पहुँचाया.
ऐसा इसलिए संभव हुआ क्योंकि स्थानीय लोग हनीफ़ को जानते थे.
आख़िरी लड़ाई
नरीमन हाउस की आखिरी लड़ाई शुक्रवार की सुबह शुरु हुई.
इस बारे में वो कहते हैं, "कमांडो ने बता दिया था कि सुबह में हवाई मार्ग से छत पर और कमांडो उतरेंगे तो मैंने उनको बताया कि चरमपंथी छत पर भी गोलियां चलाते हैं इस बात से उनको मदद मिली और जब कमांडो छत पर उतर रहे थे तो नीचे के कमांडोज़ ने कवर फायर दिया."
धीरे-धीरे कार्रवाई तेज़ हुई और नीचे से कमांडो ऊपर की तरफ़ और ऊपर से कमांडोज़ नीचे आए और चरमपंथियों को मार गिराया.
| |
हनीफ़ शेख़ ने नक्शे तक बनाकर एनएसजी को दिए |
लेकिन क्या इस भीषण गोलाबारी में हनीफ़ को डर नहीं लगा, इस सवाल पर वो कहते हैं, "डर क्यों नहीं लगेगा अभी इतना गोली चलेगा तो. लेकिन कमांडो मेरे को बोले थे कि तुम्हारी ज़िम्मेदारी मेरी. तुम्हारी सिक्योरिटी हमारा तो मैं थोड़ा निश्चिंत हो गया था."
वो बताते हैं कि दो कमांडो हमेशा उन्हें घेरे में लिए रहते थे और अपना काम करते थे.
हनीफ़ कहते हैं, "वो तो बहुत ज़बर्दस्त काम किए. चरमपंथी लोग लिफ्ट में जाते थे और अलग अलग माले से गोली चलाते थे ताकि लगे कि वो बहुत सारे हैं. कमांडोज़ को ये तकनीक पता थी और उन्होंने लिफ़्ट उड़ा दी. ऐसा दिमाग से काम कर रहे थे ये कमांडो."
नरीमन हाउस जब खाली कराया गया तो कमांडो की तस्वीरें टीवी चैनलों पर प्रसारित की गईं लेकिन उसमें हनीफ़ नहीं दिखे. हनीफ़ को इससे कोई शिकवा नहीं है.
वो कहते हैं, "कमांडो की उस बटालियन के हेड मेरे पास आए और बोले कि हनीफ़ तू नहीं होता तो ये मिशन कामयाब नहीं होता. ये नरीमन हाउस मुठभेड़ का असली हीरो तू ही है. यहाँ लोग जानते हैं मैंने क्या किया. मेरे लिए यही बहुत है. कमांडो लोग अपना जान दिए मैंने तो बस थोड़ी मदद ही की है."
Tuesday, October 28, 2008
कैसे मनाये दिवाली ?
जब हमारा पूरा देश सुलग रहा है तो आप कहते हैं "शुभ दीपावली " नही मेरे दोस्त मैं नही मना सकता ये दीपावली .... देश जल रहा है कुछ नही बहुत कुछ करने की जरुरत है....
ऐसे में शिवमंगल सिंह सुमन की एक कविता याद आ रही है:
घर-आंगन में आग लग रही ।
सुलग रहे वन -उपवन,
दर दीवारें चटख रही हैं
जलते छप्पर- छाजन ।
तन जलता है , मन जलता है
जलता जन-धन-जीवन,
एक नहीं जलते सदियों से
जकड़े गर्हित बंधन ।
दूर बैठकर ताप रहा है,
आग लगानेवाला,
मेरा देश जल रहा,
कोई नहीं बुझानेवाला।
भाई की गर्दन पर
भाई का तन गया दुधारा
सब झगड़े की जड़ है
पुरखों के घर का बँटवारा
एक अकड़कर कहता
अपने मन का हक ले लेंगें,
और दूसरा कहता तिल
भर भूमि न बँटने देंगें ।
पंच बना बैठा है घर में,
फूट डालनेवाला,
मेरा देश जल रहा,
कोई नहीं बुझानेवाला ।
दोनों के नेतागण बनते
अधिकारों के हामी,
किंतु एक दिन को भी
हमको अखरी नहीं गुलामी ।
दानों को मोहताज हो गए
दर-दर बने भिखारी,
भूख, अकाल, महामारी से
दोनों की लाचारी ।
आज धार्मिक बना,
धर्म का नाम मिटानेवाला
मेरा देश जल रहा,
कोई नहीं बुझानेवाला ।
होकर बड़े लड़ेंगें यों
यदि कहीं जान मैं लेती,
कुल-कलंक-संतान
सौर में गला घोंट मैं देती ।
लोग निपूती कहते पर
यह दिन न देखना पड़ता,
मैं न बंधनों में सड़ती
छाती में शूल न गढ़ता ।
बैठी यही बिसूर रही माँ,
नीचों ने घर घाला,
मेरा देश जल रहा,
कोई नहीं बुझानेवाला ।
भगतसिंह, अशफाक,
लालमोहन, गणेश बलिदानी,
सोच रहें होंगें, हम सबकी
व्यर्थ गई कुरबानी
जिस धरती को तन की
देकर खाद खून से सींचा ,
अंकुर लेते समय उसी पर
किसने जहर उलीचा ।
हरी भरी खेती पर ओले गिरे,
पड़ गया पाला,
मेरा देश जल रहा,
कोई नहीं बुझानेवाला ।
जब भूखा बंगाल,
तड़पमर गया ठोककर किस्मत,
बीच हाट में बिकी
तुम्हारी माँ - बहनों की अस्मत।
जब कुत्तों की मौत मर गए
बिलख-बिलख नर-नारी ,
कहाँ कई थी भाग उस समय
मरदानगी तुम्हारी ।
तब अन्यायी का गढ़ तुमने
क्यों न चूर कर डाला,
मेरा देश जल रहा,
कोई नहीं बुझानेवाला।
पुरखों का अभिमान तुम्हारा
और वीरता देखी,
राम - मुहम्मद की संतानों !
व्यर्थ न मारो शेखी ।
सर्वनाश की लपटों में
सुख-शांति झोंकनेवालों !
भोले बच्चें, अबलाओ के
छुरा भोंकनेवालों !
ऐसी बर्बरता का
इतिहासों में नहीं हवाला,
मेरा देश जल रहा,
कोई नहीं बुझानेवाला ।
घर-घर माँ की कलख
पिता की आह, बहन का क्रंदन,
हाय , दूधमुँहे बच्चे भी
हो गए तुम्हारे दुश्मन ?
इस दिन की खातिर ही थी
शमशीर तुम्हारी प्यासी ?
मुँह दिखलाने योग्य कहीं भी
रहे न भारतवासी।
हँसते हैं सब देख
गुलामों का यह ढंग निराला ।
मेरा देश जल रहा,
कोई नहीं बुझानेवाला।
जाति-धर्म गृह-हीन
युगों का नंगा-भूखा-प्यासा,
आज सर्वहारा तू ही है
एक हमारी आशा ।
ये छल छंद शोषकों के हैं
कुत्सित, ओछे, गंदे,
तेरा खून चूसने को ही
ये दंगों के फंदे ।
तेरा एका गुमराहों को
राह दिखानेवाला ,
मेरा देश जल रहा,
कोई नहीं बुझानेवाला ।
साभार: कविता कोष
Thursday, October 23, 2008
कहाँ गया पवन ?
"फ़ुट डालो और राज करो " ....कब तक ये नेता अपना मतलब साधने के लिए आम जनता ka इस तरह मजाक उडाते रहेंगे....जब तक हम अशिक्षा और बेरोजगारी के मारे रहेंगे ये ऐसे फायदा उठाते रहेंगे ....अंग्रेज तो चले गए पर उनकी निति अभी भी यहाँ चल रही है हाँ ये अलग बात है की अब एक भारतीय दुसरे भारतीय पर इसका इस्तेमाल कर रहा है .....
जागरण में छपा ये समाचार पढ़ें पवन के बारे में :
Oct 21, 11:56 pm
बिहारशरीफ/पटना। मुम्बई में मनसे कार्यकर्ताओं के हाथों मारे गए पवन का शव मंगलवार को अपराह्न लगभग 4.30 बजे उसके पैतृक गांव बाराखुर्द लाया गया। सर्वदलीय शोक सभा के लिए पहले शव वाहन को बिहाशरीफ लाया जाना था, लेकिन उपद्रव की आशंका को देख पुलिस ने नूरसराय में ही उसे रोक दिया। इससे स्थानीय लोगों व पुलिस के बीच नोकझोंक भी हुई। आखिरकार शव वाहन बाराखुर्द ले जाया गया। यहां एक घंटे ठहरने के बाद शव को अंतिम संस्कार के लिए फतुहा ले जाया गया। साथ में नालंदा पुलिस की एस्कार्ट पार्टी भी गई। मृतक के पिता जगदीश महतो ने कहा है कि वह बुधवार को मनसे प्रमुख राज ठाकरे व उसके कार्यकर्ताओं के खिलाफ बिहारशरीफ कोर्ट में हत्या का मुकदमा दर्ज कराएंगे।
पवन का शव पहुंचते ही लोगों का गुस्सा फूट पड़ा। अभाविप व छात्र जदयू ने मनसे प्रमुख राज ठाकरे का पुतला फूंका और इस कृत्य की भर्त्सना की। इस बीच, दैनिक जागरण में छपी खबर का संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार ने मृतक के परिजनों को डेढ़ लाख की सहायता राशि दिए जाने की घोषणा की है। उधर, पटना में एयरपोर्ट पर ताबूत में बंद अपने इकलौते बेटे के शव को देखकर पिता जगदीश कुमार बिलख पड़े। एयरपोर्ट पर पवन के पिता के साथ चाचा अमर कुमार और बाराखुर्द के दो दर्जन से ज्यादा लोग मौजूद थे। ग्रामीणों ने राज ठाकरे पर हत्या का मुकदमा चलाए जाने तथा महाराष्ट्र में प्रतियोगी परीक्षाओं के आयोजन पर रोक लगाए जाने की मांग की। इधर, नूरसराय में मृत पवन की एक झलक पाने को आतुर भीड़ को ताबूत देखकर संतोष करना पड़ा। शव के बाराखुर्द पहुंचते ही माहौल गमगीन हो गया। ग्रामीण आक्रोशित थे, और घरवालों का रो-रोकर बुरा हाल था। बाराखुर्द पहुंचने वाले विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं ने पवन के शव पर माल्यार्पण कर संवेदना जताई। नेताओं ने केन्द्र व महाराष्ट्र सरकार से राज ठाकरे के खिलाफ देशद्रोह व हत्या का मुकदमा चलाए जाने की मांग की। इससे पहले, शव लेने एयरपोर्ट पहुंचे विधायक श्रवण कुमार ने घटना का सीधा दोष केंद्र सरकार पर मढ़ते हुए महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की मांग की। उन्होंने कहा कि बार-बार बिहारियों पर हमला होने के बाद भी केंद्र सरकार कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है।
25 वर्षीय पवन विज्ञान विषय से स्नातक करने के बाद प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था। इसी सिलसिले में रेलवे की परीक्षा में शामिल होने मुंबई गया था। वैसे उसका एलआईसी में सेलेक्शन हो चुका था। पिता श्री कुमार पहले एक सिक्यूरिटी एजेंसी में गार्ड की नौकरी करते थे। एलआईसी में सेलेक्शन के बाद पवन ने उन्हें आगे नौकरी करने से मना कर दिया था। भर्राये गले से श्री कुमार ने बताया कि वह कहता था कि अब मैं काम करुंगा, आप घर पर रह कर आराम करिए। ईश्वर ने मुझे यह कैसा दंड दिया। एयरपोर्ट पर मौजूद पवन के चाचा अमर भी अपने आप पर काबू नहीं रख पा रहे थे। उन्होंने कहा कि आखिर मुंबई में उससे किसी को क्या दुश्मनी हो सकती थी? वह तो किसी से ऊंचे स्वर में बात भी नहीं करता था। श्री कुमार ने बताया कि गांव में पवन की मां की हालत बेहद नाजुक है। वह खबर मिलने के बाद से ही बार-बार बेहोश हो रही हैं।
Wednesday, October 15, 2008
मेरे जीवन का नशा
किसी भूखे को खाना खिलाने का नशा
किसी बाढ़-पीड़ित को सहायता पहुचाने का नशा
किसी अनपढ़ को पढाने का नशा
किसी बुजुर्ग की लाठी बन्ने का नशा
किसी दलित को उसका सामाजिक हक़ दिलाने का नशा
किसी अर्धसत्य वर्ग वाले को मुख्या धारा में लाने का नशा
समाज में जो आ गए हैं हाशिये पर उन्हें फ़िर से मुख्यधारा में लाने का नशा
अपना निज जीवन सर्वस्व पर लुटाने का नशा
हाँ-हाँ यही है मेरे जीवन का नशा
Thursday, August 14, 2008
आशा को वोट करें : The Livelihood Programme for millions
http://www.membersproject.com/project/view/SQVEE2

कुछ और बात इस प्रोजेक्ट के बारे में ...
There are more than 10 million artisans globally who live under poverty, but their art and creation has always been the centre of attraction for masses. These artisans are also known for their dilapidated situation, declining traditional livelihoods and exploitation by the market-middlemen. Quite often they are landless. My model integrates the credit, production and marketing activities for these under privileged artisans; hence helping them to be independent, create sustainable livelihoods.
Our goal is to establish a platform that will facilitate to create sustainable livelihoods for these underprivileged artisans, particularly rural and women artisans and thereby, improve their economic and living conditions. The artisans are organized as self help groups; provided with orders and designs to fulfill the order and given credit to purchase raw materials. The production goes through a QA cycle. The artisans will be federated at the district level and organized as Producer Company.
Our primary objective is to increase the number of livelihoods and income levels by scaling up the businesses of the artisan groups. The organization will return all profits above a fair trade cost of production and operating costs to the artisans groups as investments in trainings, raw materials, more efficient modes of production and all that is needed to create lucrative, sustained livelihoods from their handicrafts production.
As been involved in various social organizations, I deeply feel the need of creating a social Infrastructure wherein these under privileged artisans get a platform to show their talent and create livelihood for themselves. I believe in the value of seeking to bring justice and hope to these artisans and at the same time bring in handicrafts that reflect and reinforce rich cultural traditions that are environmentally sensitive and appeal to our global consumers.
फिलहाल सारे प्रोजेक्टों में 'आशा' ka क्रमांक ५वा है हमें इसे प्रथम क्रमांक तक पहुचाना है , तो इसके लिए करना होगा आपको वोट आपका एक-एक वोट अमूल्य है तो देर ना करें इस नेक कार्य में ।
ताजा स्तिथि जानने के लिए यहाँ देखें
http://www.membersproject.com/search/top100.html?sortBy=supportCount
Last date for voting is : 30th August
Friday, July 18, 2008
राष्ट्रीय प्रतिभा खोज (NTSE) परीक्षा - 2009
इस परीक्षा में जो भी उतरीं होंगे उन्हें हर महीने ५०० रूपये की छात्रवृति मिलेगी । अफ्फोस ये है की इस योजना ka लाभ गरीबों और जरूरतमंद बच्चों तक नही पहुच पाता है । इस योजना का लाभ सभी बड़े-बड़े घर के बच्चें हिन् उठाते हैं, जिन्हें इस छात्रवृति की कोई जरुरत नही होती है । अब आप हिन् बताये की DPS, DAV और ऐसे हिन् बड़े-बड़े विद्यालयों में पढने वाले बच्चों को क्या जरुरत है ५०० रूपये महीने के छात्रवृति की , उनके अभिभावक तो हर महीने हजारों रूपये विद्यालय में tuition fee के रूप में जमा करते हैं....
अब आवस्यकता इस बात की है की इस छात्रवृति योजना को कैसे जरुरतमंदों तक पहुचाया जाए ।
सबसे पहले तो हमें अपने आस-पास के सरकारी विद्यालयों में इसकी जानकरी देनी चाहिए और अपने आस-पास के गरीब बच्चों को प्रोत्साहित करें इस परीक्षा में शामिल होने के लिए ।
दूसरी मदद हम बच्चों को इस परीक्षा की तयारी में कर सकते हैं , क्योंकि इन गरीब बच्चों के पास ना हिन् कोई so called coaching classes की सुविधा होगी ना हिन् private tutor होंगे । तो हम युवा इस में महतवपूर्ण किरदार निभा सकते हैं ....
और आखिर में एक आग्रह है उनलोगों से जो अपने बच्चों को private school में पढा रहे हैं और उनके पढाई का खर्च उठाने में सक्षम हैं तो कृपया करके अपने बच्चे को इस परीक्षा में शामिल ना करवाएं । अगर किसी गरीब को ये पैसा मिलेगा तो वो भी थोड़ा पढ़ा लेगा और देश का नाम रोशन कर सकेगा । आपका बच्चा तो बिना इस छात्रवृति के भी पढ़ हिन् लेगा .....
और हाँ अगर आप NTSE के बारे में और ज्यादा जानना चाहते हैं या फ़िर कोई भी समस्या इस से सम्बंधित हो तो मुझसे संपर्क करें , यथासंभव मदद करने की कोशिश करूंगा ।
Saturday, July 12, 2008
भगवान का आरक्षण
आप सभी जरा अपने विचारों से हमें अवगत कराएँ.....इस विषय पर आगे भी चर्चा जारी रहेगी । पोल में अपना मत देना ना भूलें ....
Saturday, June 21, 2008
डूबते को NIOS ka सहारा
अभी-अभी सभी परीक्षाओं के परिणाम आ रहे हैं और बहुत सारे बोर्ड के परिणाम तो आ भी गए हैं। ऐसे में एक तरफ़ तो जश्न का माहौल होता है, जुनके बच्चे अच्छे प्राप्तांक लाते हैं उनके घर में जश्न का माहौल होता है, बच्चों को बहुत प्रोत्साहन मिलता है । पर वहीँ दुसरे जगह जो बच्चे कुछ कारणों से अनुत्रिन हो जाते हैं उनके साथ समाज में बहुत बुरा व्यव्हार किया जाता है, जो की बहुत ग़लत है । हम और आप किसी भी बच्चे की बूढी और ज्ञान को मात्र एक परीक्षा के प्राप्तांक पर नही तौल सकते हैं । जरुरत है की अभिभावक अनुत्रिन बच्चों को सही तरीके से सहयोग करें, उनका हौसला बढायें... न जाने ऐसे कितने लोग हैं जो एक बार किसी परीक्षा में अनुत्रिन होने के बाद भविष्य में बहुत अच्छा कम किया हो, उनके बारे में बच्चों को बताएं ।
फिलहाल मैं एक जानकारी सब अनुत्रिन विद्यार्थियों और अभिभावकों को देना चाहता हूँ । अगर आपका बच्चा इस वर्ष फ़ैल हो गया है और आप उसका साल बिगाड़ना नहीं चाहते है तो उसका एक विकल्प है : NIOS (राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी संस्थान)

NIOS में एक सुविधा है "On demand exam" . यह सुविधा हर बोर्ड के बच्चे के लिए उपलब्ध है । १०विन और १२विन में अनुत्रिन हुए बच्चे इस सुविधा का लाभ उठा सकते हैं । इस परीक्षा का परीक्षाफल २-३ हफ्ते के अन्दर आ जाता है, तो इस तरह से आपका साल बर्बाद होने से बच जाएगा और हाँ NIOS की डिग्री का मान्यता पुर भारतवर्ष के हर कॉलेज से है तो आप इसके लिए परेशान न हों । तो क्यों ना इस सुविधा का लाभ उठाया जाए : http://www.nios.ac.in/on-demand.htm
परीक्षा की तैयारी में आप विलंब न करें , पुरा course material ऑनलाइन उपलब्ध है
आप अपने आस-पड़ोस में इस बात की जानकारी लोगों को दें । वैसे NIOS के ऊपर अलग से एक पोस्ट लिखने की जुरत है वो कभी बाद में ...
Wednesday, June 18, 2008
लोक कवियों की वाणी
मोकों कहाँ ढूंढे बन्दे, मैं तो तेरे पास में ।
ना मैं देवल ना मैं मस्जिद, ना काबे कैलाश में ।
ना तो कौनो क्रिया-कर्म में, नही योग बैराग में ।
खोजी होय तो तुरतै मिलिहों, पल भर की तलास में ।
कहैं कबीर सुनो भाई साधो, सब सवांसो की स्वांस में ।
भेद न कर क्या हिंदू-मुस्लमान
ज्ञानी है तो स्वयं को जान
वाही है साहिब से पहचान ॥
(२)
खा-खाकर कुछ पायेगा नहीं ,
न खाकर बनेगा अहंकारी ।
सम खा तभी होगा संभावी ,
खुलेंगी साँकल बंद द्वार की ।
कवियत्री Lal Ded के बारे में ज्यादा जानने के लिए आप यहाँ देखें ....
Monday, June 02, 2008
चिन्च्पोड़ त्रासदी ( Chinchpod Disaster)
कुछ तस्वीरें इस हादसे की और कैंप की



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Please replace [at] by @ and [dot] by .
तो देर किस बात की मेरे दोस्तों जो बनता है वो करें इन गरीब भाई बहनो के लिए , विकास आमटे जी और उनकी संस्था तो पहले से हिन् इस काम में लगी है, अब हमारा फर्ज बनता है की हम भी यथासंभव विकास आमटे जी का सहयोग करें ताकि वो इस कार्य को सफलतापूर्वक कर सकें ....
और हाँ हमारे न्यूज़ चैनल वालों के लिए ये ब्रेकिंग न्यूज़ नहीं था क्योंकि ये तो गरीबों की दास्ताँ हैं मेरे दोस्त , अगर धनाढ्य लोगों का कुत्ता भी गुम हो जाए तो ब्रेकिंग न्यूज़ बन जाता है, धन्य है हमारी मीडिया ......
"ग्रामीण विकास प्राकल्प" के तरफ़ से आम जनता से सहयोग की अपील : English और Marathi में ।