संत कबीर की वाणी :
मोकों कहाँ ढूंढे बन्दे, मैं तो तेरे पास में ।
ना मैं देवल ना मैं मस्जिद, ना काबे कैलाश में ।
ना तो कौनो क्रिया-कर्म में, नही योग बैराग में ।
खोजी होय तो तुरतै मिलिहों, पल भर की तलास में ।
कहैं कबीर सुनो भाई साधो, सब सवांसो की स्वांस में ।
मोकों कहाँ ढूंढे बन्दे, मैं तो तेरे पास में ।
ना मैं देवल ना मैं मस्जिद, ना काबे कैलाश में ।
ना तो कौनो क्रिया-कर्म में, नही योग बैराग में ।
खोजी होय तो तुरतै मिलिहों, पल भर की तलास में ।
कहैं कबीर सुनो भाई साधो, सब सवांसो की स्वांस में ।
प्रसिद्ध कश्मीरी लोक कवियत्री Lal Ded के कुछ वाख । देखिये लल्लेश्वरी जी भी कबीर जी के जैसा हिन् कुछकह रही हैं ....
(१)
थल-थल में बसता है शिव हिन् ,
भेद न कर क्या हिंदू-मुस्लमान
ज्ञानी है तो स्वयं को जान
वाही है साहिब से पहचान ॥
(२)
खा-खाकर कुछ पायेगा नहीं ,
न खाकर बनेगा अहंकारी ।
सम खा तभी होगा संभावी ,
खुलेंगी साँकल बंद द्वार की ।
कवियत्री Lal Ded के बारे में ज्यादा जानने के लिए आप यहाँ देखें ....
भेद न कर क्या हिंदू-मुस्लमान
ज्ञानी है तो स्वयं को जान
वाही है साहिब से पहचान ॥
(२)
खा-खाकर कुछ पायेगा नहीं ,
न खाकर बनेगा अहंकारी ।
सम खा तभी होगा संभावी ,
खुलेंगी साँकल बंद द्वार की ।
कवियत्री Lal Ded के बारे में ज्यादा जानने के लिए आप यहाँ देखें ....
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