Monday, December 01, 2008

एनएसजी कमांडो के हीरो: हनीफ

जो कुछ भी मुंबई में हुआ वो बुरा हुआ, निंदनीय है इस बात से सभी सहमत है । पर जो इसके बाद राजनितिक पार्टियां कर रही है और मीडिया कर रही है वो भी कहीं से सही नही है । लोग समस्या के ऊपर विचार करने के बजाय एक दुसरे पर कीचड़ उछालने में लगे हैं। इंडिया टीवी ने तो अबतक स्वर्ग की सैर हिन् करवाई थी इस बार तो उन्होंने इन आतंकवादियों से सीधा LIVE बातचीत भी सुनवाया !! कुछ लोग हैं जो इस घटना को एक सांप्रदायिक रंग देने में भी लगे हैं ।

उन सभी के मुह पर तमाचा जड़ता है ये एक युवा: हनीफ जो नरीमन हाउस के पास आइसक्रीम बेचने का काम करता हैं। आप खुद हिन् पढिये और अंदाजा lagayie हनीफ की बहादुरी का,

प्रस्तुति साभार : बीबीसी हिन्दी

मुंबई के नरीमन हाउस में चरमपंथी हमलों के बाद एनएसजी के कमांडो के साथ फोटो तो कई लोग खिंचवा रहे थे लेकिन ये कमांडो जिसके साथ फ़ोटो खिंचवा रहे थे वो हनीफ़ शेख थे.

हनीफ़ नरीमन हाउस के बाहर ही आइसक्रीम की दुकान चलाते हैं लेकिन जब नरीमन हाउस में चरमपंथी आए तो उसके बाद पुलिस और कमांडोज़ को चप्पे चप्पे की जानकारी देने और नरीमन हाउस भवन तक ले जाने का काम हनीफ़ ने ही किया था.

रविवार को लोगों के आइसक्रीम के आर्डरों के बीच बात करते हुए हनीफ़ ने कहा, "असल में क्या है न. मैं इधर का ही रहनेवाला हूँ. मेरेको सभी बिल्डिंग के बारे में पता है. कैसा बना है वो. कैसा जाना है उसमें इसलिए पुलिस जब आई तो लोगों ने मेरा नाम बोला. फिर मैं न पेड़ पर बहुत जल्दी चढ़ पाता हूं इसलिए इधर मुझे लोग जानते भी हैं."

नरीमन हाउस एक सँकरी गली में तीन चार इमारतों के बीच घिरा हुआ है. पहले हनीफ़ पुलिस को वहां लेकर गए और बाद में कमांडो को भी.

वो बताते हैं, "पुलिस तो रात में थी. मैं उनको पहुँचा कर वापस आ गया लेकिन सुबह में कमांडो आए तो मैंने उनको पहले इमारत का नक्शा बना कर दिया. इससे वो बहुत खुश हुए और मुझे साथ लेकर गए. हम लोग नीचे थे और चरमपंथी तीसरे और चौथे माले पर थे."

कमांडो की उस बटालियन के हेड मेरे पास आए और बोले कि हनीफ़ तू नहीं होता तो ये मिशन कामयाब नहीं होता. ये नरीमन हाउस मुठभेड़ का असली हीरो तू ही है. यहाँ लोग जानते हैं मैंने क्या किया. मेरे लिए यही बहुत है
हनीफ़ शेख़

वो बताते हैं कि इमारत में घुसते ही यहूदी रब्बी की लाश पड़ी थी और कमांडो के अनुसार शायद उन्हें चरमपंथियों ने इमारत में घुसते ही मार डाला था.

हनीफ़ बताते हैं कि उन्होंने एक छोटे बच्चे को बाहर निकालने में मदद की और साथ ही आसपास की इमारतों से भी परिवारों को बाहर निकाल कर सुरक्षित स्थान पर पहुँचाया.

ऐसा इसलिए संभव हुआ क्योंकि स्थानीय लोग हनीफ़ को जानते थे.

आख़िरी लड़ाई

नरीमन हाउस की आखिरी लड़ाई शुक्रवार की सुबह शुरु हुई.

इस बारे में वो कहते हैं, "कमांडो ने बता दिया था कि सुबह में हवाई मार्ग से छत पर और कमांडो उतरेंगे तो मैंने उनको बताया कि चरमपंथी छत पर भी गोलियां चलाते हैं इस बात से उनको मदद मिली और जब कमांडो छत पर उतर रहे थे तो नीचे के कमांडोज़ ने कवर फायर दिया."

धीरे-धीरे कार्रवाई तेज़ हुई और नीचे से कमांडो ऊपर की तरफ़ और ऊपर से कमांडोज़ नीचे आए और चरमपंथियों को मार गिराया.

हनीफ़ शेख़
हनीफ़ शेख़ ने नक्शे तक बनाकर एनएसजी को दिए

लेकिन क्या इस भीषण गोलाबारी में हनीफ़ को डर नहीं लगा, इस सवाल पर वो कहते हैं, "डर क्यों नहीं लगेगा अभी इतना गोली चलेगा तो. लेकिन कमांडो मेरे को बोले थे कि तुम्हारी ज़िम्मेदारी मेरी. तुम्हारी सिक्योरिटी हमारा तो मैं थोड़ा निश्चिंत हो गया था."

वो बताते हैं कि दो कमांडो हमेशा उन्हें घेरे में लिए रहते थे और अपना काम करते थे.

हनीफ़ कहते हैं, "वो तो बहुत ज़बर्दस्त काम किए. चरमपंथी लोग लिफ्ट में जाते थे और अलग अलग माले से गोली चलाते थे ताकि लगे कि वो बहुत सारे हैं. कमांडोज़ को ये तकनीक पता थी और उन्होंने लिफ़्ट उड़ा दी. ऐसा दिमाग से काम कर रहे थे ये कमांडो."

नरीमन हाउस जब खाली कराया गया तो कमांडो की तस्वीरें टीवी चैनलों पर प्रसारित की गईं लेकिन उसमें हनीफ़ नहीं दिखे. हनीफ़ को इससे कोई शिकवा नहीं है.

वो कहते हैं, "कमांडो की उस बटालियन के हेड मेरे पास आए और बोले कि हनीफ़ तू नहीं होता तो ये मिशन कामयाब नहीं होता. ये नरीमन हाउस मुठभेड़ का असली हीरो तू ही है. यहाँ लोग जानते हैं मैंने क्या किया. मेरे लिए यही बहुत है. कमांडो लोग अपना जान दिए मैंने तो बस थोड़ी मदद ही की है."

5 comments:

Eternal Rebel said...

Bahut badhiya Guni bhai, achha kiye Haneef bhai ke baare mein bata ke, jo Mumbai attacks par dharm ki raajniti kar rahe hain unko bhi pata chale

ganand said...

Dhanyawad Purnendu bhai,
Mumbai hamle mein jo ahat hue hai jinke parijan mare hain, jin logo sahshik kam kiya hai par unka naam media mein matra is liye nahi hai ki wo to garib hain, un sabhi ke baare mein jankari ikkatha kar raha hoon.

Hamlog yathasambhav madad karne ki koshish bhi karenge...

Mera manana hai ki aise har atanki hamle ke baad kewal suraksha vyavastha par dhayan dene se kuchh nahi hoga, balki hame un garibon ka bhi dhyan rakhan hoga jo in hamle mein kisi karan se prabhavit hue, khas karke Bachchhon ka...kyonki bachchhen hamari dharohar hain aur agar garibi, lachari aur abhav mein ye bachchhe samaj ke galat tatvon ke haath chale gaye to pura samaj chaupat hoga...sayad ek aur apradhi paida hoga aur iski puri jimmewari ham sabhi ke upar hogi...

Aap ke vichar amantrit hain is mudde par...
Aaj mumbai nikal raha hoon kuchh mritakon ke parijanon se milne ja raha hoon...

kamal kumar joshi said...

Hanif is a real hero. I have written this story in Jansatta Hindi daily (published December 20, 2008 Chaupak). But it's very sad that neither Indian media nor Indian government noticed it and honoured bravery of Hanif.

ganand said...

Good work joshi ji...cahliye kuchh log to uski bahaduri ko recognise kar rahe hain. Lets leave the government, can we do something...If you are interested please contact me through mail. Kindly send me the article which you have published in Jansatta.

Guneshwar Anand

Prakash Badal said...

meraa pranaam un sahbhee foujiyon ko jo hamaare sakoon ke liye apani jaan par khel jaate hain