Tuesday, August 28, 2007

कहां जाएं

कहां जाएं


पथ्राया
नेहों का टाल
कहां जाएं

गली-गली
फैले हैं जाल
कहां जाएं

देख-देख मौसम के धोखे
बंद किये हारकर झरोखे
बैठे हैं
अंधियारे पाल
कहां जाएं

आये ना रंग के लिफ़ाफ़े
बातों के नीलकमल हाफें
मुरझाई
रिश्तों की डाल
कहां जाएं

कुह्रीला देह का नगर हैं
मन अपना एक खंडहर है
सन्नाटे
खा रहे उबाल
कहां जाएं ?

-हरीश निगम

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