- धूमिल
आएये देखते हैं हमारे यहाँ के भिन्न-भिन्न वर्ग के लोग क्या सोचते हैं आजादी के बारे में ......बनवारी गौतम, हाथ रिक्शाचालक, कोलकाता ..........
आजादी से हमें क्या लेना-देना ? हमारे दिमाग में तो हर अगली ख़ुराक के लिए रोटी जुगाडने कि चिन्ता है । हमारे पुरखों कि पुरी उर्जा रिक्शा पर लदे इंसानी भार को ढोने खर्च होती थी और अब हम भी यही कर रहे हैं । हम कभी अपनी फतेहलिसे उबार नहीं पाये । रोटियों कि चिन्ता गयी हिन् नही तो कहॉ से मालूम होगा आजादी का मर्म ?
ये आलेख कादम्बिनी में छपा है और मैं इसका बाकी का भाग जल्द हिन् आपलोगों के सामने प्रस्तुत करुँगा। तो तबतक करें हम और आप मंथन कि क्या सही में आजादी हमारे यहाँ सारे वर्ग के लोगों को मिल गयी है या केवल एक खास वर्ग को मिली है , और अगर आपका उत्तर है हाँ तो क्या हम और आप नही जिम्मेदार हैं कहीं इस वर्तमान व्यवस्था के लिए ........
- साभार कादम्बिनी
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