आज सुबह से हिन् इक्षा थी कि कुछ लिखा जाये परसाई जी के बारे में , अभी जा के समय मिला है ।
रचना की मूल अंतर्वस्तु और उसके भाषा-शिल्प-दोनों ही स्टारों पर परसाई जी जनता के रचनाकार थे । चाहे भाषा या भूषा का सवाल हो, चाहे धर्म, संस्कृति , कला, साहित्य अथवा प्रदेश का-उन्होने उन पर व्यापक जनोंमुख नजरिए से विचार किया । औपने बेजोड़ व्यंगात्मक तेवर के सहारे अपनी समूची समकालीनता को खंघालते हुए पाठकीय मानस को जाग्रत और परिष्कृत करने की जैसी कोशिश उनके यहाँ मिलती है, वैसी इधर समूचे भारतीय साहित्य में दुर्लभ है ।
--साभार राजकमल पर्काशन
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