Thursday, December 25, 2008

मदद के लिए गुहार ...

G Ramalakshmi, विशाखापट्नम की रहने वाली है । ये पिछले २ साल से APLASTIC ANEMIA से पीड़ित हैं। इन्होने अपना इलाज चेन्नई के प्रसिद्ध अस्पताल श्री रामचंद्र मेडिकल hospital में करवाई पर दवा से कोई फायदा नही हुआ । अब डॉक्टर के अनुसार उनकी बीमारी का एक मात्र इलाज
Bone Marrow Transplant (BMT) है । इसके लिए रामालक्ष्मी को CMC, Vellore जाना होगा पर पैसों के आभाव में वो नहीं जा पा रही है । पिछले २ साल में रामालक्ष्मी के परिवार ने तकरीबन ५-६ लाख खर्च किए और अब उनके पास कुछ भी नही बचा है । तो अगर आप रामालक्ष्मी की मदद करना चाहते हैं तो कृपया अपना सहयोग उनके बैंक खाते में जमा करें ।

Bank Account Detail:

Name : G. Ramalakshmi
A/C No. 07430110006757
UCO Bank, HZS Factory Branch
Visakhapatnam - 530015
Tel : 0891 - २५१७४५२

कुछ बातें रामालक्ष्मी और उनके परिवार के बारे में :

रामालक्ष्मी ने २००६ में अपना B.Tech पुरा किया, और उसी वर्ष उन्हें इस बीमारी ने अपना शिकार बना लिया और तब से अब तक जिंदगी और मौत के खेल के बीच जूझ रही है रामालक्ष्मी । रामालक्ष्मी के पिताजी मजदूरी का काम करते हैं । बड़ी मुश्किलों से बेटी को पढाया की आगे जाकर उनका सहारा बनेगी, पर होनी को कौन टाल सकता है । भगवान् उनकी कड़ी परीक्षा ले रहा है ।
रामालक्ष्मी अपने माँ-बाप की सबसे बड़ी संतान है । उस से छोटे २ भाई हैं । दोनों अभी पढाई कर रहे हैं । तो घर में अब आय का स्रोत केवल रामालक्ष्मी के पिताजी हिन् हैं ।

ये APLASTIC ANEMIA होता क्या है ?

APLASTIC ANEMIA में हमारा अस्थि मज्जा लाल रक्त कण बनाना कम या बंद कर देता है , मतलब की अस्थि मज्जाु की लाल रक्त कण बनने की क्षमता खत्म हो जाती है । अगर दवा से सुधर नही होता है तो इसका एक मात्र इलाज BMT(Bone Marrow Transplant) है । जो की बहुत हिन् महंगा होता है । इसका खर्च तकरीबन १०-१२ लाख रूपये आता है । पर BMT करने के पहले एक टेस्ट होता है जिससे ये मिलाया जाता है की आपका Bone Marrow का सैम्पल देने वाले के सैम्पल से मिलता है की नही । यह भी एक बड़ी समस्या है अभी भारत वर्ष में । यहाँ अभी तक कोई भी डाटाबेस नही है जहाँ आपको donor की जानकारी मिल सके । APLASTIC ANEMIA के बारे में बाकी बातें किसी और पोस्ट में । मैं भी अभी इस विषय पर अपनी जानकारी को बढा रहा हूँ । इस विषय में ज्यादा जानकारी के लिए देखें : http://www.aaaoi.org/index.htm

रामालक्ष्मी की वर्तमान स्तिथि :

फिलहाल रामालक्ष्मी blood transfusion पर है और वो विशाखापत्तनम में है । अभी कल हिन् मेरी बात उनसे हुई और उनके पास blood transfusion के लिए भी पैसे नही हैं ।

डॉक्टरों के सलाह के अनुसार अब BMT हिन् उसका एक मात्र इलाज है । इसके लिए CMC Vellore जाना है । CMC Vellore जाने और वहां पर Bone Marrow टेस्ट के लिए भी करीब ५० हजार रुपयों की जरुरत है । एक बार अगर Bone Marrow टेस्ट का सैम्पल किसी से मिल जाएगा उसके बाद हिन् BMT किया जा सकता है ।

आप सहायता कैसे कर सकते हैं ?

--> पहला तो आप रामालक्ष्मी के Account में पैसा डाल सकते हैं । आप जो भी सहायता राशि रामालक्ष्मी के Account में डालें उसके बारे में एक मेल मुझे करना न भूलें : ganand[dot]song[at]gmail.com

--> आप इसकी जानकारी अपने अन्य मित्रों को दे सकते हैं ।

--> आप अगर किसी ऐसी संस्था को जानते हैं जो APLASTIC ANEMIA के मरीजों के लिए काम करती है तो आप हमें उसकी जानकारी दे सकते है ।

--> और हाँ रामालक्ष्मी के मंगल स्वास्थय के लिए प्रार्थना करना न भूलियेगा, आप सभी की दुआ की बहुत जरुरत है ।


और किसी भी प्रकार के शंका निवारण या फ़िर अन्य प्रशन के लिए मुझे मेल करने में आप जरा भी ना हिचकिचाएँ ।

Saturday, December 20, 2008

यूनुस जी को जन्मदिन की ढेरों बधाइयाँ

कल की पहेली का प्रशांत बाबू ने बिल्कुल सही जवाब दिया । आपको इसका इनाम जल्द हिन् मिल जायेगा ...:)

आप हैं ध्वनि तरंगों के ताल पर विविध भारती के संग और मैं हूँ आपका दोस्त यूनुस खान


कौन नही परिचित होगा इस आवाज से, हाँ ये हैं हमारे प्यारे यूनुस खान जी, और आज इनके जम्दीन के अवसर पर हम सभी की तरफ़ से इन्हे ढेरों बधाइयाँ ....

यूनुस जी की रेडियो पर प्रयोगधर्मिता से आप सभी जरुर वाकिफ होंगे, इस बारे में मुझे कुछ कहने की आवस्यकता नहीं है ।
यूनुस जी के इतना सुलझा और सरल इंसान इस दुनिया में अब बहुत हिन् कमलोग हैं । अगर आप मेरी बात से इतेफाक नही रखते हैं तो सुनिए हमारी हाल के संछिप्त मुलाकात का विवरण ...
७ नवम्बर के दोपहर में मुंबई पंहुचा कुछ काम से, फ़िर मैंने सोचा क्यों न कुछ समय निकाल कर यूनुस जी से भी मुलाकात किया जाए । उनको फ़ोन किया तो पता चला की वो किसी रिकॉर्डिंग में व्यस्त हैं शायद शाम तक छुट्टी मिले । शाम को वापस जब मैं काम करने के बाद तक़रीबन ७.३० pm बजे यूनुस जी को फ़ोन किया तो वो अँधेरी में थे और मैं बोरीवली में । उन्होंने कहा की रुको मैं आ रहा हूँ , तुम axis बैंक के ATM के नजदीक इन्तेजार करना । मेरी गाड़ी बोरीवली से ९.१६ pm पर थी ।
यूनुस जी दौड़ते- भागते ८.४० पर आए । फ़िर बस क्या था हम दोनों वहीँ स्टेशन पर थोड़ा जगह देख कर बैठ गए और ९.१४ तक बात करते रहे । ज्यादातर बातचीत मुंबई धमाकों में मारे गए आमलोगों और हमारे द्विअर्थी समाज के बारे में थी, वो बातें कभी और ... मुझे पता हिन् नही चला की कब ९.१४ हुआ तब यूनुस जी ने बोला भाई भागो वरना गाड़ी छुट जायेगी । अगले दिन हिन् अहमदाबाद से पटना जाना था बाढ़-राहत कार्य के लिए , वरना मैं ट्रेन छोड़ देता ....तो एक और मुलाकात के वादे के साथ यूनुस जी विदा लिया । पुरे रास्ते मैं यूनुस जी की सादगी के बारे में हिन् सोचता रहा ....उनके साथ बिताया एक-एक पल आपको कुछ नया और अलग समाज में करने की प्रेरणा देता है....

अगर आप अभी तक नहीं मिले हैं यूनुस जी से तो जीवन में कम से कम एक बार जरुर मिलिए फ़िर आपका मन बार-बार मिलने का करने लगेगा ....

यूनुस जी के जन्मदिन के अवसर पर उनकी कुछ तस्वीरें :


यूनुस जी ऑटो के ऊपर अपना हाथ साफ़ करते हुए

यूनुस जी अपना प्रिय कार्य करते हुए

सभी फनों में महारत है भाई यूनुस जी की ...

यूनुस जी अपने खाने की बारी का इन्तेजार करते हुए

चित्र सन्दर्भ : सभी चित्र यूनुस जी का ब्लॉग और विविध भारती वेबसाइट से लिए गए हैं ।

Friday, December 19, 2008

पहचान कौन ?


यह तस्वीर मैंने बिना अनुमति के चुरायी है , सर्वप्रथम इसके लिए माफ़ी चाहूँगा । पर इस तस्वीर पर आधारित एक पहेली है सभी ब्लॉगर भाई-बहनों के लिए ....

क्या आपलोग पहचान सकते हैं यह तस्वीर किस महाशय की है ?

अपना जवाब कल दोपहर से पहले कमेन्ट में लिखें । कल होगी थोडी लम्बी बातचीत इनके ऊपर, तबतक रखते हैं थोड़ा सा Suspense...

Saturday, December 06, 2008

बाढ़ की विभीषिका अभी खत्म नहीं हुई है बिहार में ...

बाढ़ की विभीषिका अभी खत्म नहीं हुई है , ये अलग बात है की हमारे समाचार पत्रों और मीडिया से बिहार के बाढ़ के बारे में रिपोर्ट आना बंद हो गया....पर स्तिथि अब भी उतनी हिन् कारुणिक है , जैसे-जैसे ठंढ बढ़ रही है स्तिथि और खराब हो रही है, कैसे सामना करेंगे ये गरीब जिनके तन पर कोई वस्त्र नहीं है वो इस भीषण ठंढ ka. और इस बात को ध्यान में रखते हुए हम लोगों ने कम्बल बाटने के काम को पिछले महीने से सर्वोच प्राथमिकता दी है . पिछले महीने में तकरीबन हजार कम्बल ka वितरण किया गया है, हम लोगों ने ये पक्का किया है की एक-एक कम्बल जरुरत मंद को सीधा मिले. और इस काम को सार्थक बनाने में जुड़े हैं श्रीकांत भैया और चन्दन जी . इन दोनों व्यक्तियों ने पिछले महीने से अपना सर्वस्व बिहार बाढ़ रहत कार्य में हिन् लगा दिया है . इनकी जितनी भी तारीफ़ की जाए काम होगी....
पर हमलोगों ka ये प्रयास सागर में एक बूँद के सामान होगा ...और लोगों को आगे आने की जरुरत है ....

हमलोगों के पुरे बाढ़ सहायता कार्य की जानकारी के लिए ये ब्लॉग देखें

Wednesday, December 03, 2008

तुकाराम आम्ब्ले को मेरा सलाम

सिपाही के पद से हाल हिन् में पदोनत्ति प्राप्त कर जमादार (ASI) बने तुकाराम जी ने वीरता की ऐसी मिसाल कायम की, उन्हें युगों-युगों तक याद किया जायेगा। ऐसे जांबाज बहादुरों की कमी नही है हमारे देश में ... पर अफ़सोस हम जनता और हमारी सरकार ऐसे कर्मठ और जांबाज लोगों को भूल जाते हैं , उनके परिजनों का कोई ध्यान नही दिया जाता है, खास करके जो लोग आर्थिक रूप से कमजोर हैं उनके परिवार वालों का ध्यान रखना हमारा फर्ज बनता है

विस्त्रृत समाचार: साभार दैनिक जागरण

गोलियां खाकर भी नहीं छोड़ा आतंकी को

Dec 02, 06:34 pm

मुंबई। औरों की सुरक्षा के लिए जो बंदूक लेकर चलते हैं उनकी जान भी खतरे में पड़ती है। लेकिन कुछ उल्लेखनीय ढंग से वीरगति प्राप्त करते हैं जिन्हें उनके बलिदान के लिए बारंबार याद किया जाता है।

अभी हाल ही में पदोन्नति प्राप्त कर सहायक सब इंस्पेक्टर का दर्जा हासिल करने वाले महाराष्ट्र पुलिस के 48 वर्षीय तुकाराम आंबले मुंबई में आतंकी हमले के दौरान एक हीरो की तरह शहीद हुए हैं। मुंबई आतंकी हमले में उभरकर सामने आए कई वीरतापूर्ण कारनामों में से एक सच्ची कहानी तुकाराम की भी है।

सलाम तुकाराम को जिसकी बहादुरी के कारण मुंबई पुलिस को आतंकी हमले का एकमात्र आतंकी हाथ लग सका है। अपने वाकी टाकी पर 26 नवंबर की रात प्राप्त संदेश के मुताबिक तुकाराम आंबले क्लास्निकोव एसाल्ट राईफल लेकर अंधाधुंध फायरिंग करने वाले आतंकियों का पीछा किया था।

आतंकियों के बारे में संदेश फैल जाने के बाद डीबी नगर पुलिस स्टेशन की टीम ने चौपाठी के लालबत्ती पर नाकाबंदी की। डीबी नगर पुलिस स्टेशन के सहायक इंस्पेक्टर हेमंत भावधनकर ने बताया कि हमें अपहृत स्कोडा कार पर दो आंतकियों के आने की सूचना मिली थी। हमने सूचना पाने के तत्काल बाद ही दक्षिण मुंबई में स्थित गीरगांव चौपाठी पर नाकाबंदी की।

उन्होंने कहा कि सूचना मिलने के कुछ देर बाद ही हमने देखा कि जिस तरह के कार का ब्यौरा दिया गया था। नाकाबंदी से 50 फीट दूर पर अपनी गति को कम कर लिया है क्योंकि यह कार यू टर्न लेने की कोशिश कर रही थी। इस प्रक्रिया में वह रोड डिवाइडर से भी टकराई। इसके बाद कार हमारी ओर आने लगी और अजमल कसाब [गिरफ्तार आतंकी] कार से उतर आया और आत्मसमर्पण करने जैसी मुद्रा में दिखा क्योंकि उसे दोबारा फिर से अंधाधुंध गोलीबारी करनी थी।

अपनी जान की परवाह किए बगैर तुकाराम आंबले कसाब के सामने आ गया और उसने आतंकी के एके 47 राइफल के बैरल को दोनों हाथों से कसकर पकड़ लिया।

तुकारम आंबले की ओर अपने बंदूक की नोक किए हुए कसाब ने ट्रीगर दबा दी। इस बहादुर पुलिसकर्मी ने सारी गोलियों को अपने सीने के अंदर समाने दिया, लेकिन उसने आतंकी के बंदूक के बैरल को नहीं छोड़ा।

गोलियां खाने के बाद तुकाराम गिर पड़ा, लेकिन कसाब [आतंकी] को नहीं छोड़ा। इसके चलते कसाब की गोलियां का शिकार तुकाराम की टीम के अन्य किसी सदस्य को नहीं होना पड़ा।

इस बीच, उसकी टीम के सदस्यों को दूसरे आतंकी इस्माईल को ढेर करने का मौका मिल गया और कसाब को धर दबोचा। इस निर्भय पुलिस कर्मी की बहादुरी के चलते एकमात्र सबूत के तौर मोहम्मद अजमल कसाब इस समय आतंकवाद निरोधक टीम के कब्जे में है। और उससे जांच टीम को मुंबई आतंकी हमले के कई महत्वपूर्ण सुरागों के बारे में जानकरियां मिल रही है।

अबतक प्राप्त जानकारियों के मुताबिक यह आतंकी प्रमुख आतंकी गुट लश्कर-ए-तैयबा के लिए पिछले डेढ़ साल से काम कर रहा था।

Monday, December 01, 2008

एनएसजी कमांडो के हीरो: हनीफ

जो कुछ भी मुंबई में हुआ वो बुरा हुआ, निंदनीय है इस बात से सभी सहमत है । पर जो इसके बाद राजनितिक पार्टियां कर रही है और मीडिया कर रही है वो भी कहीं से सही नही है । लोग समस्या के ऊपर विचार करने के बजाय एक दुसरे पर कीचड़ उछालने में लगे हैं। इंडिया टीवी ने तो अबतक स्वर्ग की सैर हिन् करवाई थी इस बार तो उन्होंने इन आतंकवादियों से सीधा LIVE बातचीत भी सुनवाया !! कुछ लोग हैं जो इस घटना को एक सांप्रदायिक रंग देने में भी लगे हैं ।

उन सभी के मुह पर तमाचा जड़ता है ये एक युवा: हनीफ जो नरीमन हाउस के पास आइसक्रीम बेचने का काम करता हैं। आप खुद हिन् पढिये और अंदाजा lagayie हनीफ की बहादुरी का,

प्रस्तुति साभार : बीबीसी हिन्दी

मुंबई के नरीमन हाउस में चरमपंथी हमलों के बाद एनएसजी के कमांडो के साथ फोटो तो कई लोग खिंचवा रहे थे लेकिन ये कमांडो जिसके साथ फ़ोटो खिंचवा रहे थे वो हनीफ़ शेख थे.

हनीफ़ नरीमन हाउस के बाहर ही आइसक्रीम की दुकान चलाते हैं लेकिन जब नरीमन हाउस में चरमपंथी आए तो उसके बाद पुलिस और कमांडोज़ को चप्पे चप्पे की जानकारी देने और नरीमन हाउस भवन तक ले जाने का काम हनीफ़ ने ही किया था.

रविवार को लोगों के आइसक्रीम के आर्डरों के बीच बात करते हुए हनीफ़ ने कहा, "असल में क्या है न. मैं इधर का ही रहनेवाला हूँ. मेरेको सभी बिल्डिंग के बारे में पता है. कैसा बना है वो. कैसा जाना है उसमें इसलिए पुलिस जब आई तो लोगों ने मेरा नाम बोला. फिर मैं न पेड़ पर बहुत जल्दी चढ़ पाता हूं इसलिए इधर मुझे लोग जानते भी हैं."

नरीमन हाउस एक सँकरी गली में तीन चार इमारतों के बीच घिरा हुआ है. पहले हनीफ़ पुलिस को वहां लेकर गए और बाद में कमांडो को भी.

वो बताते हैं, "पुलिस तो रात में थी. मैं उनको पहुँचा कर वापस आ गया लेकिन सुबह में कमांडो आए तो मैंने उनको पहले इमारत का नक्शा बना कर दिया. इससे वो बहुत खुश हुए और मुझे साथ लेकर गए. हम लोग नीचे थे और चरमपंथी तीसरे और चौथे माले पर थे."

कमांडो की उस बटालियन के हेड मेरे पास आए और बोले कि हनीफ़ तू नहीं होता तो ये मिशन कामयाब नहीं होता. ये नरीमन हाउस मुठभेड़ का असली हीरो तू ही है. यहाँ लोग जानते हैं मैंने क्या किया. मेरे लिए यही बहुत है
हनीफ़ शेख़

वो बताते हैं कि इमारत में घुसते ही यहूदी रब्बी की लाश पड़ी थी और कमांडो के अनुसार शायद उन्हें चरमपंथियों ने इमारत में घुसते ही मार डाला था.

हनीफ़ बताते हैं कि उन्होंने एक छोटे बच्चे को बाहर निकालने में मदद की और साथ ही आसपास की इमारतों से भी परिवारों को बाहर निकाल कर सुरक्षित स्थान पर पहुँचाया.

ऐसा इसलिए संभव हुआ क्योंकि स्थानीय लोग हनीफ़ को जानते थे.

आख़िरी लड़ाई

नरीमन हाउस की आखिरी लड़ाई शुक्रवार की सुबह शुरु हुई.

इस बारे में वो कहते हैं, "कमांडो ने बता दिया था कि सुबह में हवाई मार्ग से छत पर और कमांडो उतरेंगे तो मैंने उनको बताया कि चरमपंथी छत पर भी गोलियां चलाते हैं इस बात से उनको मदद मिली और जब कमांडो छत पर उतर रहे थे तो नीचे के कमांडोज़ ने कवर फायर दिया."

धीरे-धीरे कार्रवाई तेज़ हुई और नीचे से कमांडो ऊपर की तरफ़ और ऊपर से कमांडोज़ नीचे आए और चरमपंथियों को मार गिराया.

हनीफ़ शेख़
हनीफ़ शेख़ ने नक्शे तक बनाकर एनएसजी को दिए

लेकिन क्या इस भीषण गोलाबारी में हनीफ़ को डर नहीं लगा, इस सवाल पर वो कहते हैं, "डर क्यों नहीं लगेगा अभी इतना गोली चलेगा तो. लेकिन कमांडो मेरे को बोले थे कि तुम्हारी ज़िम्मेदारी मेरी. तुम्हारी सिक्योरिटी हमारा तो मैं थोड़ा निश्चिंत हो गया था."

वो बताते हैं कि दो कमांडो हमेशा उन्हें घेरे में लिए रहते थे और अपना काम करते थे.

हनीफ़ कहते हैं, "वो तो बहुत ज़बर्दस्त काम किए. चरमपंथी लोग लिफ्ट में जाते थे और अलग अलग माले से गोली चलाते थे ताकि लगे कि वो बहुत सारे हैं. कमांडोज़ को ये तकनीक पता थी और उन्होंने लिफ़्ट उड़ा दी. ऐसा दिमाग से काम कर रहे थे ये कमांडो."

नरीमन हाउस जब खाली कराया गया तो कमांडो की तस्वीरें टीवी चैनलों पर प्रसारित की गईं लेकिन उसमें हनीफ़ नहीं दिखे. हनीफ़ को इससे कोई शिकवा नहीं है.

वो कहते हैं, "कमांडो की उस बटालियन के हेड मेरे पास आए और बोले कि हनीफ़ तू नहीं होता तो ये मिशन कामयाब नहीं होता. ये नरीमन हाउस मुठभेड़ का असली हीरो तू ही है. यहाँ लोग जानते हैं मैंने क्या किया. मेरे लिए यही बहुत है. कमांडो लोग अपना जान दिए मैंने तो बस थोड़ी मदद ही की है."