Sunday, January 11, 2009

बाढ़-पीड़ित की जान ली भूख ने

जैसा मैंने अपने पहले पोस्ट में भी लिखा था की बिहार में बाढ़-पीडितों की व्यथा कम नही हुई है . पढिये सुपौल से हमारे एक मित्र की रिपोर्ट:

सुपौल में भूख ने ली महेंद्र की जान

गरीबी के कारण दाह संस्कार नहीं हो सका, परिजनों ने शव दफनाया
भीख मांगकर किसी तरह जिंदा हैं महेंद्र की पत्नी और चार बच्चे

छातापुर (सुपौल)। बिहार के बाढ़ग्रस्त इलाकों में पीड़ितों की हालत
दिन-ब-दिन बदतर होती जा रही है। छातापुर प्रखंड अंतर्गत लालगंज पंचायत के
भरतपुर गांव में दो जनवरी को 50 वर्षीय महेंद्र शर्मा की भूख से मौत होने
की खबर मिली है। इतना ही नहीं, मौत के बाद भी गरीबी ने उसका पीछा नहीं
छोड़ा। हिन्दू होने के बावजूद उसके दाह-संस्कार के लिए परिजनों के पास
लकड़ी खरीदने के पैसे नहीं थे। इस वजह से महेंद्र के शव को बगैर जलाए
गड्ढा खोदकर दफन कर दिया गया। उसकी पत्नी रनिया देवी चार बच्चों के साथ
भीख मांगकर अब तक जिंदा है।
हालांकि बिहार सरकार ने बाढ़पीड़ितों के लिए पहली किश्त का मुआवजा (2250
रुपए और एक क्विंटल अनाज प्रति परिवार) जारी किया था लेकिन एपीएल और
बीपीएल के चक्कर में चार महीने बाद भी यह राशि गरीबों तक नहीं पहुंच सकी
है। लालगंज पंचायत की इस घटना ने तब मानवीय संवेदना को झकझोर कर रख दिया
जब राहत से वंचित भीख मांग कर दिन काट रहे महेन्द्र शर्मा को जलाने के
लिए लकड़ी तक नसीब नहीं हो सकी और मजबूरन उसके शव को परिवार वालों ने
मिट्टी में दफन कर दिया। दिवंगत की विधवा रनिया देवी बताती है कि 20
अगस्त को आयी प्रलंयकारी बाढ़ के बाद वे लोग सरकारी शिविर में रह रहे थे
लेकिन शिविर बंद होने के बाद उन्हें अपना गांव लौटना पड़ा। बाढ़ में उनकी
झोपड़ी बह गई थी जिसे किसी तरह रहने लायक बनाया और भीख मांगकर गुजारा करने
लगे। रनिया देवी बताती हैं कि चार-चार शाम के फाके के बाद भूख ने
महेन्द्र शर्मा को बीमार बना दिया और दिसम्बर के अंतिम सप्ताह में
उन्होंने बिस्तर पकड़ ली थी। बिलखते हुए वह कहती हैं कि खाने के लिए तो एक
दाना अनाज नहीं है इलाज कैसे कराते। अब तो लोग भीख भी नहीं देते हैं।
पहले बाहर से कुछ लोग खाने का सामान बांटने आते थे लेकिन अब कोई नहीं
आता। इस संबंध में मुखिया प्रमिला देवी ने बताया कि महेंद्र शर्मा के
परिवार का नाम एपीएल और बीपीएल सूची में नहीं है जिस कारण इस परिवार को
अब तक कोई सरकारी राहत नहीं मिल सकी है। उन्होंने कहा कि ऐसे 500
परिवारों की सूची बनाकर प्रखंड कार्यालय को दे दी गई है लेकिन सरकार की
तरफ से अब तक मुआवजा या किसी तरह की राहत सामग्री ऐस परिवारों को नहीं दी
सकी है। इस संबंध में प्रभारी बीडीओ अनभिज्ञता प्रकट कर रहे हैं।

बिहार में लोकल मीडिया ने इस ख़बर को प्रकाशित करने से इंकार कर दिया, सरकारी दवाब के आगे मीडिया झुकी है...
ये दशा केवल एक परिवार की नहीं है बल्कि भूखे रहनेवाले ऐसे ९०० परिवार हैं, छातापुर प्रखंड के भरतपुर और लालगंज गाँव में आज तक सरकारी सहायता का कोई भी दर्शन नही हुआ है. और यहाँ की मुखिया श्रीमती प्रमिला देवी (ON THE PAPER) भी इसमें अपनी कोई खास रूचि नहीं दिखा रही हैं. यहाँ तक की उन्होंने आज तक भरतपुर गाँव(जहाँ की महेंद्र शर्मा की मौत हुई) का दौरा भी नहीं किया है, भाई करें भी तो क्यों करें...उनके परिवार का कोई भूखा तो नहीं मर रहा है .....

तो मेरे इस पोस्ट भी उन बाढ़-पीडितों को कोई भला होगा नहीं होगा मुझे पता है, पर कम से कम आपको सचाई तो पता चली . मेरे पास एक और योजना है : हम सभी मिलकर सरकारी तंत्र पर इस मामले में दवाब बढाते हैं . इसका आसन रास्ता है वो मैं आपलोगों कल बताता हूँ ....तब तक आपलोग सोचिये की हम किस दुनिया में जी रहे हैं जहाँ एक तरफ़ Macdonalds और ऐसे कई अमेरिकी रेस्तरां में हजारों रूपये पानी की तरह बहते हैं वहीँ कोई दूसरी तरफ़ भूख से मर जाता है . हम सब मिलकर सरकार को दोष दे कर शांत हो जाते है ...हो गया हमारा काम ख़त्म अपनी जिंदगी तो मजे में चल रही हैं ना दुनिया जाए भाड़ में .....

कल के पोस्ट को पढ़ना न भूलियेगा .....

3 comments:

Unknown said...

This is really very painful.Some how we will have to develop pressure on the state govt to take all needful actions immediately so that all the relief schemes are implemented effectively.

CHAMPARAN TALKIES said...

Lets do one thing. Can we a group of 3-5 go there and see the ground reality.NAd not only see but also work for them for say a week.

ganand said...

Nitin jee,
Har baar jana possible nahi ho pata hai, aur wahan par already log kaam karne wale hain and we have link also, so lets try to support them from here only...Chandanjee aur Srikant bhaiya will take care there.