Tuesday, July 21, 2009

कोई बलजीत के लिए भी दुआ कर लो भाई...

बलजीत सिंह दध्वल, शायद ये नाम आपको कुछ भी याद नहीं दिलाता हो...अरे भाई याद भी कैसे आएगा, ना हिन् ये क्रिकेट से जुडा है, और ना हिन् फिल्मी दुनिया से फिर हमें कहाँ से याद आएगा ये नाम ...

तो चलिए आप सबको बता दूं की ये हमारे भारतीय हॉकी टीम के गोलकीपर का नाम है ...नहीं था...

अभ्यास सत्र के दौरान इनके आँख में चोट लग गयी और अब ये ईम्स डेल्ही में भर्ती हैं ...इनके रेटिना में चोट आई है और डॉक्टर बोल रहें हैं की एक हफ्ते के बाद हिन् कुछ पक्का कह सकते हैं की इनकी रोशनी वापस आ पाएगी की नहीं ...

अगर यही कोई क्रिकेट का खिलाडी होता या बॉलीवुड हस्ती तो लोग यज्ञ और न जाने क्या-क्या करते...पर इस गरीब हॉकी खिलाडी के लिए कोई दुआ भी नहीं...

एक अच्छी बात ये सामने आई है की हॉकी संघ बलजीत के ilaaj के सब kharch उठाने को तैयार है ..
आयी हम सब मिलकर प्रार्थना करें की बलजीत भाई की आँख जल्द-से-जल्द ठीक हो जाएँ और वो पुनः हॉकी खेल पायें ...
आमीन ...

चित्र साभार : इंडियन एक्सप्रेस

Tuesday, July 07, 2009

एक और ...

जी हाँ ये है रांची के वन विभाग के अधिकारी अनिल कुमार सिंह जी , जिन्होंने अपने हिन् विभाग के कुछ कर्मचारियों का काला चिट्ठा खोलने का प्रयास किया और हुआ क्या वही जो शाश्वत सत्य है "मौत" . एक नजर डालें The Telegraph की रिपोर्ट पर

दैनिक हिंदुस्तान की प्रस्तुति :

शनिव्ाार को अपराधियों ने राजधानी में पुलिस चौकसी के तमाम दाव्ाों को धता बताते हुए डोरंडा में सरशाम व्ान वि्ाभाग के एक रेंज ऑफिसर (रेंजर) को गोलियों से भून डाला। व्ान मुख्यालय से महज चंद फासले की दूरी पर इस घटना को अंजाम दिया गया। सामने जैप का मुख्यालय, डाकघर और पचास गज की दूरी पर ही रांची आइजी का सरकारी आव्ाास है। सरकारी कर्मियों, पुलिस और सुरक्षा जव्ाानों का यहां हमेशा जमाव्ाड़ा रहता है। हत्यारे घटना को अंजाम देने के बाद आराम से फरार हो गए। अंधेरे में तीर मार रही पुलिस हत्यारों का सुराग नहीं लगा पाई है। सूत्रों के मुताबिक व्ान वि्ाभाग में करोड़ों की ठेकेदारी हत्या की एक व्ाजह हो सकती है। इधर, अपने साथी रंज्ार की हत्या से व्ानकर्मी काफी गुस्से में हैं। रवि्ाव्ाार को संघ की आपात बैठक बुलाई गई है। इसमें आंदोलन की रूपरेखा तय की जाएगी। जानकारी के मुताबिक व्ान्य प्राणी प्रमंडल में बिल्डिंग वि्ाभाग के रेंज ऑफिसर अनिल कुमार सिंह हर दिन की तरह शाम करीब 6.30 बज्ो दफ्तर से अपनी मारुति व्ौन (संख्या बीआर-01-सी-0922) से लालपुर के आर्या होटल के समीप मोदी कांप्लेक्स स्थित घर के लिए निकले थ्ो। दफ्तर से सौ गज्ा की दूर ही घात लगाए अपराधियों ने उनपर दो गोलियां चलाईं। एक गोली अनिल सिंह के पंज्ारा में एव्ां दूसरी बायें हाथ के केहुनी को चीरती हुई पार निकल गयी। डाकघर के समीप होटल में बैठे लोगों ने गोली की आव्ााज्ा सुनी और उसी दिशा में दौडे। इनमें से कई व्ानकर्मी थ्ो। उन्होंने देखा कि रें’ा ऑफिसर अनिल सिंह व्ौन में खून से लथपथ पड़े हैं। उन्हें तत्काल मेन रोड के राज्ा अस्पताल ले ज्ााया गया। व्ाहां से उन्हें रिम्स भ्ोज्ा दिया गया। रिम्स में ज्ाांच के बाद डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया। स्व्ा. सिंह मूल रूप से बिहार के सोनपुर के रहनेव्ााले थे। पटना के लोहानीपुर में भी उनका आव्ाास है।

Friday, July 03, 2009

एक कविता सत्य बोलने वालों के नाम ...

धूमिल जी की एक कविता चन्दन जी के सौजन्य से :

मुझसे कहा गया कि संसद
देश की धड़कन को
प्रतिबिंबित करने वाला दर्पण है
जनता को
जनता के विचारों का
नैतिक समर्पण है
लेकिन क्या यह सच है?
या यह सच है कि
अपने यहां संसद -
तेली की वह घानी है
जिसमें आधा तेल है
और आधा पानी है
और यदि यह सच नहीं है
तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को
अपनी ईमानदारी का मलाल क्यों है?
जिसने सत्य कह दिया है
उसका बुरा हाल क्यों है?

-- सुदामा पाण्डेय ‘धूमिल’

इसके साथ-साथ मेरा पिछला पोस्ट भी पढें

धूमिल जी की कुछ और कवितायें इस लिंक पे हैं :http://hindini.com/fursatiya/?p=129

Thursday, July 02, 2009

पांडिचेरी से बिहार तक सत्य बोलने वालों की एक हिन् सजा होती है ...

पांडिचेरी से बिहार तक सत्य बोलने वालों की एक हिन् सजा होती है ...

अपने देश में सत्य बोलने वालों का एक हिन् अंजाम होता है और वो है मौत और गुमनामी ...

एक नहीं अनगिनत लोग भरे पड़े हैं :

किसकी बात करूँ सत्येन्द्र दुबे जी की या मंजुनाथ जी की या फिर कुछ दिन पहले मरे योगेन्द्र पाण्डेय जी की ....वही कहानी दुहरायी जा रही है हर जगह . और हाँ अगर आपलोग सोचते हैं की CBI जाच से कुछ न्याय मिलेगा तो ये आपकी सबसे बड़ी भूल है ...ऐसी शहादतों ं को CBI चोरी और लूट का केस बना कर ख़तम कर देती है ...

बहुत गुस्सा आता है इस व्यवस्था पर, जिसका मैं भी एक अंग हूँ ....और अपनी अक्रमंयता पर भी...


और हाँ हम जनता भी कितना याद करते हैं इनको, एक दिन के अन्दर हिन् सब भूल जाते हैं ...मीडिया के पन्नों से भी इन लोगों का नाम यूँ हिन् तुंरत गायब हो जाता है ...

क्या करूँ बहुत असहाय महसूस करता हूँ ...पर कुछ तो करना है ...