हाँ कोई मजाक मैं नहीं कर रहा हूँ ..आप जानते हैं क्या ये तरीका, अगर नहीं तो पढिये ये मेरा पोस्ट आपको पता चल जाएगा ..
अरे भाई जाईए गुजरात के कक्ष(KUTCH) क्षेत्र में फिर आपको इस पहेली का हल मिल जाएगा. इस क्षेत्र में एक खास समुदाय रहता है "Agarias" ये नमक बनाने का काम करते हैं .
ये नमक बना कर कंपनी को मात्र १५ पैसे prati kilo की कीमत पर बेचते हैं , और यही नमक बड़ी-बड़ी कंपनियां ११ रूपये किलो के भावः बेचती हैं. वो बेचारे गरीब भूखो मर रहे हैं और ये कंपनी वाले माला-मॉल हो रहे हैं.
पहले तो कुछ लोग खुदरा बिक्री खुद से जाकर शहर में कर लेते थे, पर जब से ये आयोडीन का चक्कर आया है,ं सादा नमक कौन खरीदेगा ...
इनकी व्यथा को देखने वाला कोई नहीं हैं ...
"गणतर" नाम की एक संस्था इन मजदूरों के बच्चों के पढाई के क्षेत्र में काम कर रही है . हमलोग गणतर और सृष्टी के साथ मिलकर एक यात्रा पर जा रहे हैं . शायद कुछ ज्यादा कर ना पायें इनके लिए पर इनके दुःख-दर्द को और करीब से देख पाउँगा ...और भविष्य में जो भी बन पड़ेगा वो करने का प्रयत्न भी करूंगा ....
वापस आने के बाद अपने अनुभव आप सभी के साथ विस्तार से बाटूंगा .....
Rest in Peace Ramalakshmi - It's been 4 years by now
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Rest in peace Ramalakshmi.
Even though you are away from us.. your fighting spirit and inspiration
helps us to get Hearts to Help Charitable trust keep goi...
11 years ago
6 comments:
ये वैसा ही है जैसा चिप्स के व्यापार में होता है कि किसान से चार रु किलो आलू खरीदते है और चार सौ रुपये किलो चिप्स बेचते हैं. आप और आप जैसे लोग इतने संवेदनशील हैं और इतनी चिंता करते है जानकर संतोष हुआ. दुष्यंत कुमार कि एक पंक्ति याद आई कि "इस बंद कमरे में एक रोशनदान तो है".
ईश्वर आपकी मदद करे. मेरी शुभकामनायें.
Guni Ji , these middlemen are everywhere. See in agriculture! As long as the farmer doesnot get the real price for his goods, India will remain a Third World Country
हर शहर के हर मोहल्ले में ये कहानी दोहराई जा रही है
बस तरीका अलग अलग है
आपका वीनस केसरी
best of luck to your for this social work
but i think if some training/help under the self helping groups scheme of Indian government is provided to them it may improve the condition of these peoples
sharmnaak hai yah bajarwaad.
क्या कहा जाये.
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