हरिशंकर परसाई जी का व्यंग्य "पगडंडियों का जमाना " का पहला भाग पढिये ....आप देखेंगे की ये आज के दौर में कितना सार्थक और सटीक बैठता है ...
copyright@ Harishankar Parsai
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मैंने फिर इमानदार बन्ने की कोशिश की और फिर नाकामयाब रहा .
एक सज्जन ने मुझसे कहा की एक परिचित अध्यापक से कहकर मैं उनके लड़के के नंबर बढ़वा दूं . यों मैं उनका काम कर देता, पर बहुत अरसे बाद उसी दिन मुझे इमान की याद आयी थी और मैंने पूरी तरह ईमानदार बन जाने की प्रतिज्ञा कर ली थी . सज्जन की बात सुनकर मुझे पुराणी कथाएँ याद आ गयीं और मैंने सोचा की प्रतिज्ञा करते मुझे देर नहीं हुई की ये इन्द्र और विष्णु मेरी परीक्षा लेने आ पहुचें . उन्हें विश्वास नहीं है की युग-प्रवर्तक की लिस्ट में नाम खोजने लगते हैं. इसलिए ये देवता अब तपस्या शुरू होते हिन् परीक्षा लेने आ पहुचते हैं .
मैंने उन्हें मन-ही-मन प्रणाम किया और प्रकट कहा, " मैं इसे अनुचित और अनैतिक मानता हूँ . मैं यह काम नहीं करूँगा . "
मुझे आशा थी की अब ये मौलिक देवरूप में प्रकट होंगे और कहेंगे - 'वत्स, तू परीक्षा में खरा उतरा. बोल तुझे क्या चाहिए? हम वर देने के मूड में हैं. बोल हिंदी साहित्य के इतिहास में तेरे ऊपर एक अध्याय लिखवा दूं ? या कहे तो, किसी समीक्षक की तेरे घर में पानी भरने की ड्यूटी लगा दूं ?
वे मौलिक रूप में तो आये, पर वह रूप प्रसंता का न होकर रोष का था. वे भुनभुनाकर चले गए . मैंने सुना, वे लोगों से मेरे बारे में कह रहे थे - 'आजकल वह साला बड़ा ईमानदार बन गया है .'
मैं जिसे देवता समझ बैठा था वो तो आदमी निकला . मैंने अपनी आत्मा से पूछा, 'हे मेरी आत्मा, तू ही बता ! क्या गाली खाकर बदनामी करवाकर मैं इमानदार बना रहूँ ?
आत्मा ने जवाब दिया, 'नहीं, ऐसी कोई जरुरत नहीं है . इतनी जल्दी क्या पड़ी है ? आगे जमाना बदलेगा, तब बन जाना .
मेरी आत्मा बड़ी सुलझी हुई बात कह देती है कभी-कभी . अच्छी आत्मा 'फोल्डिंग' कुर्सी की तरह होनी चाहिए . जरुरत पड़ी तब फैलाकर उस पर बैठ गए; नहीं तो मोड़कर कोने में टिका दिया . जब कभी आत्मा अड़ंगा लगाती है, तब उसे समझ में आता है की पुराणी कथाओं के दानव अपनी आत्मा को दूर किसी पड़ी तोते में क्यों रख देते थे . वे उससे मुक्त होकर बेखटके दानवी कर्म कर सकते थे . देव और दानव में अब भी तो यही फर्क है --एक की आत्मा अपने पास हीं रहती है और दुसरे की उससे दूर .
मैंने ऐसे आदमी देखे हैं, जिनमे किसी ने अपनी आत्मा कुत्ते में रख दी है, किसी ने सूअर में . अब तो जानवरों ने भी यह विद्या सिख ली है और कुछ कुत्ते और सूअर अपनी आत्मा किसी-किसी आदमी में रख देते है .
आत्मा ने कह दिया तो , मैंने ईमानदार बन्ने का इरादा त्याग दिया .
क्रमश: ...
Rest in Peace Ramalakshmi - It's been 4 years by now
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Rest in peace Ramalakshmi.
Even though you are away from us.. your fighting spirit and inspiration
helps us to get Hearts to Help Charitable trust keep goi...
11 years ago
4 comments:
gobar babu, sahity pelne ke liye dhanyavad. khoob theliye, thellm thel ka jamana hi. kuch to rash niklega hi.
nikita
गोया आपने तो खजाने की झलक दिखला दी .....
***अच्छी आत्मा 'फोल्डिंग' कुर्सी की तरह होनी चाहिए . जरुरत पड़ी तब फैलाकर उस पर बैठ गए; नहीं तो मोड़कर कोने में टिका दिया***
सफलता का यह सूत्र परसाईं जी ने दिया था या स्वेट मार्डन ने या किसी धांसूरामबापू ने !?
बहुत बढ़िया चर्चा बधाई .
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