Thursday, May 29, 2008

एक कविता : यमराज की दिशा

आज सुबह-सुबह अपने छोटे भाई के पाठ्य पुस्तक में ये कविता पढीसोचा आपलोगों के साथ इसे बाटूंआज के परिपेक्ष्य में यह कविता काफी सटीक हैचंद्रकांत देवताले जी की यह रचना है, "यमराज की दिशा " । आप पढियेऔर ख़ुद हिन् बतायिए की आज के दौर में ये कविता कितनी सार्थक है या नही ....

यमराज की दिशा

माँ की इश्वर से मुलाकात हुई या नहीं
कहना मुश्किल है
पर वह जताती थी जैसे इश्वर से उसकी बातचीत होते रहती है
और उससे प्राप्त सलाहों के अनुसार
जिंदगी जीने और दुःख बर्दास्त करने का रास्ता खोज लेती है

माँ ने एक बार मुझसे कहा था -
दक्षिण की तरफ़ पैर कर के मत सोना
वह मृत्यु की दिशा है
और यमराज को क्रुद्ध करना
बुद्धिमानी की बात नही है

तब मैं छोटा था
और मैंने यमराज के घर का पता पूछा था
उसने बताया था-
तुम जहाँ भी हो वहाँ से हमेशा दक्षिण में

माँ की समझाइश के बाद
दक्षिण दिशा में पैर करके मैं कभी नही सोया
और इससे इतना फायदा जरुर हुआ
दक्षिण दिशा पहचानने में
मुझे कभी मुश्किल का सामना नही करना पड़ा

मैं दक्षिण में दूर-दूर तक गया
और हमेशा मुझे माँ याद आई
दक्षिण को लाँघ लेना सम्भव नहीं था
होता छोर तक पहुँच पाना
तो यमराज का घर देख लेता

पर आज जिधर पैर करके सोओं
वही दक्षिण दिशा हो जाती है
सभी दिशाओं में यमराज के आलीशान महल हैं
और वे सभी में एक साथ
अपनी दहकती आखों सहित विराजते हैं

माँ अब नही है
और यमराज की दिशा भी अब वह नहीं रही
जो माँ जानती थी

-चंद्रकांत देवताले

आखिरी अंतरा पर आपलोग जरा ध्यान देंगे "पर आज जिधर पैर करके सोओं वही दक्षिण दिशा हो जाती है"

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