अब किसी भी स्वतंत्रा दिवस समारोह में जाने की इक्षा नहीं होती है ...सब एक ढकोसला लगता है ..क्या वाकई हम स्वतंत्र हैं? नहीं ...पहले अंग्रेजों का राज था , और आज भ्रष्ट नेता और अफसरशाही का ... पहले गैरों ने लूटा और आज अपनों ने ...
आज भी हमारा देश गुलाम है भूखमरी का , भ्रष्टाचार का , चापलूसों का ...और न जाने ऐसे कई भयंकर बिमारियों का ...
अगर आप यहाँ सत्य के लिए आवाज उठाओ तो मौत की गारंटी पक्की है ...न जाने पिछले १ साल में कितने RTI कार्यकर्ता की मौत हुई है ...अभी कुछ दिन पहले अहमदाबाद में RTI कार्यकर्ता अमित जेतवा की हत्या हाईकोर्ट परिसर के बाहर कर दी गयी है ...जांच चल रही है पर पता है कुछ नहीं होने वाला है ...कुछ महीने पहले पुणे में रत्नाकर शेट्टी की हत्या हुई , आज तक CBI जाच में कुछ भी सामने नहीं आया है ...और ना जाने ऐसे कितने केस हैं ...
देश में भूखमरी की हालत कई अफ़्रीकी देशों से भी ख़राब है ...और हम इस स्वतंत्रा पर गर्व करते हैं ...जब दिल्ली में लाल किले के प्राचीर से प्रधानमंत्री ध्वजारोहण करते हैं और देश के विकास यात्रा की बात करते हैं उसी समय ना जाने कितने बच्चे इस देश में अकालमृत्यु के शिकार हो जाते हैं...
मुझे शर्म आती है ऐसी आजादी पर और खास करके ऐसे आजादी के महोत्सव पर ...अभी देश आजाद नहीं है ...एक और लड़ाई की जरुरत है और ये लड़ाई पहले की आजादी की लड़ाई से कहीं ज्यादा मुश्किल है क्योंकि हमें अपनों से हिन् लड़ना हैं...
परसाई जी के एक पुराने व्यंग्य की कुछ पंक्तिया आपलोग पढ़िए इस अवसर पर ...
गणतन्त्र का तोहफा
गणतन्त्र का छठवाँ वर्ष भी पूरा हुआ .अपूर्व सफलता का सेहरा जबरदस्ती हमारे सर बाँधा गया !
समाजवादी ढंग की रचना की घोषणा हो गयी . केवल घोषणा हो गयी, याने कांग्रेस के वैज्ञानिकों ने सुख का कृत्रिम सूरज बनाकर अवाडी में दिखाया और फिर जवाहर जैकिट की जेब में रख लिया, ताकि जनसभाओं में जेब में से निकलकर दिखाया जा सके .
पंडित नेहरु की विदेश यात्रा हुई और भारत शांति का मसीहा बन गया . दुनिया में शांति कायम कर रहा है
घर में शांति की जरुरत नहीं है . बाहर देश का नाम ऊँचा होने से उस देश के आदमी को भूख नहीं लगती . इसलिए जब-जब पंडित नेहरु शांति-यात्रा की तब-तब इस देश के गरीबों को अजीर्ण हो गया !
गरीब और दुबला हुआ . धनि और मुटाया .
और इस तरह गणतन्त्र का छठवाँ वर्ष समाप्त हुआ . सफल हुआ .
अनेक वर्ष ऐसे ही आते रहें और इसी तरह चलता रहे . मंत्रियों की संख्या बढे, शोषण के नए तरीके निकलें, कांग्रेसी बैल के सींग और नुकीले हों, भ्रष्टाचार दिन-दिन बढ़ें, गुंडागिरी पनपे, विधानसभा सदस्यों का भत्ता बढे, पुलिस को नींद की दवा वितरित हो .
5 comments:
main to poori tarah is baat se sehmat hoon ki svatantrata diwas koi jashn manaane ka din nahi..hume sharm aani chahiye ki itna saalon baad desh me ye halat hai
निश्चित तौर पर, आप यहाँ सत्य के लिए आवाज उठाओ तो मौत की गारंटी पक्की है
कैसे भविष्य की कल्पना करें?
बाबु! टीचर हूं और एक आग तुम्हारी तरह मुझ में भी जलती है. कैसी आज़ादी?
किससे आज़ादी?
हर साल जुलाई प्रवेश उत्सव में बीत जाता है और अगस्त आधा 'झंडे' की तैयारी में.शिक्षा के क्षेत्र में तक आज तक प्रयोग ही किये जा रहे हैं.कुकुरमुत्तों की तरह स्कूल्स खोल कर सरकार अपनी पीठ थपथपाती है.
जख्म बहुत है और दर्द भी पर किसे कहें?
प्रश्न बिलकुल सही है
"ओरे बिस्मिल आजात अगर तुम हिन्दोस्तान
देखते सारा मुल्क किस टशन क्या थ्रिल में है"
गुलाल की ये पंक्तियाँ थोड़ी छिछोरी लग सकती है गुनी जी लेकिन सच तो वैसा ही कड़वा है, देश में आज जो पीढ़ी ऐश कर रही है उससे कभी आज़ादी छिनी ही नहीं गयी, उसने कभी अपना तिरंगा अपने ही देश में लहराने के लिए सीने पे गोलियां नहीं खाई. ईस पीढ़ी के लिए आज़ादी का मतलब है अपनी मन की करने की स्वतंत्रता. अब ऐसे में क्या बात करें आज़ादी की और क्या क्रांति की ..
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