Friday, July 03, 2009

एक कविता सत्य बोलने वालों के नाम ...

धूमिल जी की एक कविता चन्दन जी के सौजन्य से :

मुझसे कहा गया कि संसद
देश की धड़कन को
प्रतिबिंबित करने वाला दर्पण है
जनता को
जनता के विचारों का
नैतिक समर्पण है
लेकिन क्या यह सच है?
या यह सच है कि
अपने यहां संसद -
तेली की वह घानी है
जिसमें आधा तेल है
और आधा पानी है
और यदि यह सच नहीं है
तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को
अपनी ईमानदारी का मलाल क्यों है?
जिसने सत्य कह दिया है
उसका बुरा हाल क्यों है?

-- सुदामा पाण्डेय ‘धूमिल’

इसके साथ-साथ मेरा पिछला पोस्ट भी पढें

धूमिल जी की कुछ और कवितायें इस लिंक पे हैं :http://hindini.com/fursatiya/?p=129

1 comment:

सतीश पंचम said...

बहुत सुंदर।