Monday, August 16, 2010

क्या वाकई हम स्वतंत्र हैं?...

स्वतंत्र हुए हमें ६३ साल हो गए... हर साल १५ अगस्त को हम इसका जश्न भी मनाते हैं, लता जी की आवाज में सुबह-सुबह "ऐ मेरे वतन के लोगों ..." और न जाने कितने देश भक्ति गीत सुनते हैं .. कुछ मीठा भी खाते हैं ध्वजारोहण के बाद और फिर दिन भर का आराम यही है हमारा स्वतंत्रता दिवस ...

अब किसी भी स्वतंत्रा दिवस समारोह में जाने की इक्षा नहीं होती है ...सब एक ढकोसला लगता है ..क्या वाकई हम स्वतंत्र हैं? नहीं ...पहले अंग्रेजों का राज था , और आज भ्रष्ट नेता और अफसरशाही का ... पहले गैरों ने लूटा और आज अपनों ने ...
आज भी हमारा देश गुलाम है भूखमरी का , भ्रष्टाचार का , चापलूसों का ...और न जाने ऐसे कई भयंकर बिमारियों का ...
अगर आप यहाँ सत्य के लिए आवाज उठाओ तो मौत की गारंटी पक्की है ...न जाने पिछले १ साल में कितने RTI कार्यकर्ता की मौत हुई है ...अभी कुछ दिन पहले अहमदाबाद में RTI कार्यकर्ता अमित जेतवा की हत्या हाईकोर्ट परिसर के बाहर कर दी गयी है ...जांच चल रही है पर पता है कुछ नहीं होने वाला है ...कुछ महीने पहले पुणे में रत्नाकर शेट्टी की हत्या हुई , आज तक CBI जाच में कुछ भी सामने नहीं आया है ...और ना जाने ऐसे कितने केस हैं ...

देश में भूखमरी की हालत कई अफ़्रीकी देशों से भी ख़राब है ...और हम इस स्वतंत्रा पर गर्व करते हैं ...जब दिल्ली में लाल किले के प्राचीर से प्रधानमंत्री ध्वजारोहण करते हैं और देश के विकास यात्रा की बात करते हैं उसी समय ना जाने कितने बच्चे इस देश में अकालमृत्यु के शिकार हो जाते हैं...

मुझे शर्म आती है ऐसी आजादी पर और खास करके ऐसे आजादी के महोत्सव पर ...अभी देश आजाद नहीं है ...एक और लड़ाई की जरुरत है और ये लड़ाई पहले की आजादी की लड़ाई से कहीं ज्यादा मुश्किल है क्योंकि हमें अपनों से हिन् लड़ना हैं...

परसाई जी के एक पुराने व्यंग्य की कुछ पंक्तिया आपलोग पढ़िए इस अवसर पर ...

गणतन्त्र का तोहफा
गणतन्त्र का छठवाँ वर्ष भी पूरा हुआ .
अपूर्व सफलता का सेहरा जबरदस्ती हमारे सर बाँधा गया !
समाजवादी ढंग की रचना की घोषणा हो गयी . केवल घोषणा हो गयी, याने कांग्रेस के वैज्ञानिकों ने सुख का कृत्रिम सूरज बनाकर अवाडी में दिखाया और फिर जवाहर जैकिट की जेब में रख लिया, ताकि जनसभाओं में जेब में से निकलकर दिखाया जा सके .

पंडित नेहरु की विदेश यात्रा हुई और भारत शांति का मसीहा बन गया . दुनिया में शांति कायम कर रहा है

घर में शांति की जरुरत नहीं है . बाहर देश का नाम ऊँचा होने से उस देश के आदमी को भूख नहीं लगती . इसलिए जब-जब पंडित नेहरु शांति-यात्रा की तब-तब इस देश के गरीबों को अजीर्ण हो गया !

गरीब और दुबला हुआ . धनि और मुटाया .

और इस तरह गणतन्त्र का छठवाँ वर्ष समाप्त हुआ . सफल हुआ .
अनेक वर्ष ऐसे ही आते रहें और इसी तरह चलता रहे . मंत्रियों की संख्या बढे, शोषण के नए तरीके निकलें, कांग्रेसी बैल के सींग और नुकीले हों, भ्रष्टाचार दिन-दिन बढ़ें, गुंडागिरी पनपे, विधानसभा सदस्यों का भत्ता बढे, पुलिस को नींद की दवा वितरित हो .