Wednesday, May 20, 2009

सादा नमक पर प्रतिबन्ध और गुटखा पर नहीं ...

वाह रे वाह इस देश की सर्कार और नियम . आप सभी को पता होगा की सादा नमक (raw साल्ट) पर प्रतिबन्ध है हमारे यहाँ. क्या ये सादा नमक गुटखा से भी ज्यादा खतरनाक होता है ? या गुटखा और आयोडीन नमक बनाने वाले व्यापारी वर्ग हैं जो सरकार को खूब मॉल-पानी देकर अपना उल्लू सीधा करवा रही है ....




सबसे आश्चर्य तब हुआ जब मैंने देखा की कक्ष क्षेत्र के कई गाँव में ३-४ थी में पढने वाले बच्चे गुटखा बेधड़क खा रहे थे . उन मासूम बच्चों को तो ये भी नहीं पता की वो क्या खा रहे हैं और उस से क्या नुकसान होगा. गुटखा के ऊपर ये लिखा होता की ये minor यानि बच्चों के लिए नहीं है ....पर कौन दुकानदार ये नियम देखता है उसे तो अपने मुनाफे से मतलब है ...वहीँ दूसरी तरफ गाँव के अन्य लोग भी कुछ ध्यान नहीं देते हैं ... मुझे खीज होती है ये सब देख कर क्या हर चीज के लिए हमें सरकारी नियम की बैसाखी चाहिए ?

अगर हर गाँव के कुछ बाद-बुजुर्ग और वहां के स्कूल के शिक्षक मिल कर गुटखा के खिलाफ मुहीम चलायें ें तो क्या मजाल की कोई बच्चा गुटखा खा ले....पर नहीं किसी को कुछ नहीं पड़ी है ....

वैसे ३-४ दिन के संछिप्त यात्रा में मैंने काफी गुटखे बच्चों से जमा किये और तक़रीबन १०० से ज्यादा बच्चों को इसके खतरे के बारे में थोडा प्यार से समझाया और थोडा डांटा भी.... वैसे मेरे पास भी काफी गुटखा जमा हो गया बिना पैसा खर्च किये, आप में से किसी को चाहिए क्या....:)

आप सभी को बता दूं की कक्ष के यात्रा में मैंने एक भी goitre घेंघे (गलगंड) के मरीज को नहीं देखा , जबकि सभी नमक बनाने वाले मजदूर तो सादा नमक हिन् खाते हैं, वहां कहाँ उनके पास ये ११ रूपये वाला आयोडीन युक्त नमक खाने का पैसा है गरीबों के पास ?



हैं ना ये आयोडीन का माजरा कुछ अजीब सा ...

Sunday, May 10, 2009

१५ पैसे से ११ रुपया कैसे बनाएं?

हाँ कोई मजाक मैं नहीं कर रहा हूँ ..आप जानते हैं क्या ये तरीका, अगर नहीं तो पढिये ये मेरा पोस्ट आपको पता चल जाएगा ..

अरे भाई जाईए गुजरात के कक्ष(KUTCH) क्षेत्र में फिर आपको इस पहेली का हल मिल जाएगा. इस क्षेत्र में एक खास समुदाय रहता है "Agarias" ये नमक बनाने का काम करते हैं .

ये नमक बना कर कंपनी को मात्र १५ पैसे prati kilo की कीमत पर बेचते हैं , और यही नमक बड़ी-बड़ी कंपनियां ११ रूपये किलो के भावः बेचती हैं. वो बेचारे गरीब भूखो मर रहे हैं और ये कंपनी वाले माला-मॉल हो रहे हैं.

पहले तो कुछ लोग खुदरा बिक्री खुद से जाकर शहर में कर लेते थे, पर जब से ये आयोडीन का चक्कर आया है,ं सादा नमक कौन खरीदेगा ...

इनकी व्यथा को देखने वाला कोई नहीं हैं ...

"गणतर" नाम की एक संस्था इन मजदूरों के बच्चों के पढाई के क्षेत्र में काम कर रही है . हमलोग गणतर और सृष्टी के साथ मिलकर एक यात्रा पर जा रहे हैं . शायद कुछ ज्यादा कर ना पायें इनके लिए पर इनके दुःख-दर्द को और करीब से देख पाउँगा ...और भविष्य में जो भी बन पड़ेगा वो करने का प्रयत्न भी करूंगा ....

वापस आने के बाद अपने अनुभव आप सभी के साथ विस्तार से बाटूंगा .....